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शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

आज मैं अपनी ९९ रचनायें लिख चुका हूँ !आप सभी के प्रेम, स्नेह और उत्साह वर्धन से ही मैं यहाँ तक पहुँच पाया !आशा करता हूँ कि आगे भविष्य में भी मुझे आप सभी का प्रेम मिलता रहेगा ! अब आप सबके सम्मुख है मेरी १०० वीं रचना.........
सौ में से एक होता कामयाब इश्क में !
निन्यानवें तो मिलते हैं खराब इश्क में !
आसाँ नहीं है इतना ये इश्क का सफ़र,
आते हैं मोड़ कितने ही जन
ाब इश्क में !
कहते हैं, नहीं छुपता छुपाने से इश्क ये,
रहता है आके एक दिन इंकलाब इश्क में !
कभी है ख़ुशी भी मिलती गर अच्छा बख्त हो,
अक्सर तो मिलता है इज्तिराब इश्क में !
गर खार ही मिले हैं "कमल" रख संभाल के,
ये तो नहीं ज़रूरी मिले गुलाब इश्क में !
(इन्कलाब=परिवर्तन, बख्त=भाग्य, इज्तिराब=कठिनाई, खार=कांटें )

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