फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

कौन कहता है अजनबी हो तुम,
मैंने हर जनम तुमको चाहा है !
कभी शाहजहाँ कभी मुमताज थे हम,
कभी शीरी कभी फरहाद थे हम,
हमसफ़र, हमनवा, हमराज़ थे हम,
वादा हर बार मैं निबाहा है..........१
कहा बदली को मैंने काजल है,
कहा बिजली को मैंने पायल है,
कहा फूलों को मैंने आँचल है,
मैंने हर शै में तुम्हें सराहा है.........२

मेरे हाथों से छुट गया है दिल,
तेरे कूचे में लुट गया है दिल,
तेरी खुशियों में खुश हुआ है दिल,
तेरे गम में दिल-ए-"कमल' कराहा है..३

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें