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शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

आँखें उदास और चेहरा उतरा उतरा सा है !
आज मेरा महबूब कुछ उखड़ा उखड़ा सा है !!
हँसी, ख़ुशी, चैन , आराम, सुकून,
दिल का सामान सब बिखरा बिखरा सा है !
जिस मुक़द्दर पे नाज़ करता था मैं,
ये भी क्यूँ आज बिगड़ा बिगड़ा सा है !
जो लगाया था प्यार का गुलशन मैंने,
ना कहे कोई कि उजड़ा उजड़ा सा है !
तेरा दिमाग तो :कमल" सबसे आगे था,
आज फिर क्यूँ? ये पिछड़ा पिछड़ा सा है !

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