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गुरुवार, 13 सितंबर 2012

कितने मुनव्वर थे उसके सोते में जलवे !
हाये वो चाँद सा चेहरा, वो फूल से तलवे !!
दिल तो चाहा था धीरे से जगा दूँ उसको,
लगा था डर, कहीं उठ के बोले ना लफ्ज़ कड़वे!
चल मेरे यार प्यार की आग में जलाले बदन,
मिल ही जायेंगे हमें भी कहीं चमेली के मंडवे !
आओ मिल जाओ सनम वक़्त भी है ख्वाहिश भी,
हम तो इंसान है, नहीं कोई चकवी-चकवे !
"कमल" रुके ना कलम उसकी तारीफों में,
लाओ रोशनाई ज़रा, मँगा दो कुछ सरवे !
(मुनव्वर=चमकदार, मंडवा=मंडप, चकवा-चकवी=कहते है नर चकवा और मादा चकवी दोनों पक्षी दिन में एक साथ रहते है और रात में अलग हो जाते है! अगर उनको एक ही पिंजरे में भी बंद कर दे तो शाम होते ही एक का मुँह पूरब को तो दूसरे का मुँह पश्चिम को हो जाता है, सरवा=जिस पौधे की शाखा की कलम बनती है )

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