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रविवार, 16 सितंबर 2012

***ग़ज़ल***

कौन कहता है कि मैं शराब नहीं पीता !
हाँ ! ये सच है, ऐसी वैसी खराब नहीं पीता !!
पिला ही दी उसने मख्मूर निगाहों से,
नहीं कहा गया कि जनाब नहीं पीता !
थोड़े दस्तूर अलग हैं अपने इस ज़माने से,
मौका-ए-जश्न पीता हूँ, दौर-ए-इज्तिराब नहीं पीता !
एक दो की बात तो मैं करता नहीं हूँ खैर,
वरना कौन है जो अहद-ए-शबाब नहीं पीता !
आगे चलकर हिसाब कोई मुझसे मांग ना ले,
इसलिए "कमल" कभी बेहिसाब नहीं पीता !
(मख्मूर=मादक, दस्तूर=नियम, मौका-ए-जश्न=सुख का अवसर, दौर-ए-इज्तिराब=दुःख की घडी में, अहद-ए-शबाब=यौवन काल में )

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