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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

उसका शबाब

लो आज बतलाता हूँ मैं कैसा उसका शबाब है !
खुद तो गुलाब है ही वो, उसकी हर शय गुलाब है !!
गुलाब की सी रंगत है उसके गुलाबी गालों की,
खिलती जवानी गुलाब सी, करती ईमां खराब है !
गुलाब-जल से कम नहीं उसके पसीने की बूँदें,
झलक जाती है माथे पर, कभी जब उठता नकाब है !
गुलाब की डाली सी झुकती  वो शानो पे गरदन ,
शरमाता उसके रुख से, फलक का माहताब है !
गुलाब की पंखुड़ी है उसके दो प्यारे से होंट,
"कमल" वो आँखें है उसकी या जाम-ए-शराब है !
(शय=वस्तु, शानो=कन्धों, रुख=मुख मंडल, फलक=गगन, माहताब=चंद्रमा )

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