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गुरुवार, 13 सितंबर 2012

**********विरह-वेदना************
क्यों इस मौसम में दूर हो तुम, बस इतना मुझको बतला दो !
ये अच्छी बात नहीं साजन ! सजनी को अपनी तरसा दो !!
यौवन की तपती भूमि पर तुम प्रेम सुधा रस बरसा दो !
इस मादक साँझ की बेला में तुम तन मन मेरा हरषा दो !!

ये प्रीत की चादर ओ प्रीतम बन निर्मोही कलुषित ना कर !
जब प्रण किया संग रहने का फिर प्रण को परिवर्तित ना कर !
व्यथित है मन, तुम पास नहीं, आ जाओ मेरे सपनो के कुँवर !
है बसंत ऋतु, कैसे मैं रखूँ? अंकुश अपने इस यौवन पर !!

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