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बुधवार, 12 सितंबर 2012

काटे न कटे विरह रतिया !
ये मौसम आया रास नहीं,
मेरे सांवरिया मेरे पास नहीं,
क्यों सुनता तू अरदास नहीं, मैं हारी लिख लिख कर पतिया ..१
ये कैसी प्रेम की पीर उठी,
मेरा ह्रदय जो चीर उठी,
नैनों में ले के नीर उठी, मैं कासे कहूं मन की बतिया....२
निर्मोही इतना था तू ना,
विरहा से क्या क्यूँ दुःख दूना,
है तेरे बिना सब कुछ सूना, सूनी रैना सूनी खटिया.......३

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