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सोमवार, 12 नवंबर 2012

आठों पहर

आठों पहर अब तेरे ही ख्वाब-औ-ख्याल है!
हमको जुदा करे जो, किसकी मजाल है!!
तेरे बिना अधूरा है फ़साना-ए-ज़िन्दगी,
है मुस्तकबिल तू मेरा और तू ही हाल है!
तू साथ ना था जब तक कोई बात नहीं थी,
अब तेरे बगैर दिलबर जीना मुहाल है!
तेरा इश्क मैंने पाया जो बेशकीमती है,
क्यूँ ना कहूँ मैं ये दिल मालामाल है!
लिखना ग़ज़ल सिखाया मुझे तेरी अदा ने,
कहने लगी दुनिया "कमल" तो कमाल है!
(मुस्तकबिल=भविष्य, हाल=वर्तमान)

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