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सोमवार, 19 नवंबर 2012

हो गया है मेहरबाँ मुझ पे मेरा नसीब अब !
हट गये हैं रास्ते से मेरे सब रकीब अब!!
शाम हो गयी है यारों अपने घर को जाओ तुम।
वक़्त जाया ना करो, शब्-ए-वस्ल है करीब अब!
मेरा दिल लगने लगा है अब तो बाग़-ए -दुनिया में,
जाक गये हैं भाग सब, गाती अंदलीब अब!
जब तेरी सुनता था मैं हो गया वो दौर ख़त्म,
बातें तेरी नासेहा लगती है कुछ अजीब अब!
मिल गयी मुझको तो दौलत प्यार की, वफाओं की,
कौन कहता है बताओ "कमल" है गरीब अब!
(रकीब=दुश्मन या प्रेमिका का दूसरा प्रेमी, जाया=व्यर्थ, शब्-ए -वस्ल=मिलन की रात, जाक=कौआ ,अंदलीब=कोयल,नासेहा=धर्मोपदेशक)

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