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सोमवार, 26 नवंबर 2012

रातें रंगीं हो जाती दिन हो जाते रूपहले!
अगर हम दोनों मिल जाते थोडा और जो पहले!!
एक दूजे के पहलू में काट लेंगे उमर अपनी,
मुबारक दुनिया को उनके ये महल दुमहले!
मुक़द्दस उस घडी का बस एक इन्तिज़ार है हमको,
जब मैं अपनी कह लूँगा और अपनी को तू कहले!
यहाँ के लोग चलते हैं चालें ताश की मानिंद,
ज़रा सा भी मिला मौका डालते नहले पे दहले!
"कमल" की ये गुजारिश है साथ ना छोड़ना मेरा,
नाम सुनकर जुदाई का बड़ा ज़ोरों से दिल दहले!
(मुक़द्दस=पवित्र, मानिंद=तरह, गुजारिश=प्रार्थना)

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