फ़ॉलोअर

बुधवार, 21 नवंबर 2012

आखिर कुबूल हो गयी दिल की मेरी दुआ!
है शुक्र उस खुदा का, दीदार तो हुआ!!
कोना कोना दिल का हुआ रोशन,
जब पड़ने लगी उसके चेहरे की शुआ!
जीत गयी जिंदादिली ज़माने से,
करता भी क्या ये आखिर ज़माना मुआ!
बातों बातों में उसने हामी भर ली,
मानो कि जैसे जीता, हारता जुआ!
उमंगें छूने लगी आसमान "कमल",
आपस में जब लबों ने लबों को छुआ!
(दीदार=दर्शन, शुआ=किरण)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें