आदमी जब कहता है कि 'कोई बात नहीं',
दरअसल तब ही कोई बात हुआ करती है !
वस्ल की रात को ही उनकी इनायत ना समझ,
शब-ए-फुरकत भी उन्हीं क़ी सौगात हुआ करती है !
दिन है वो जो गुज़रता है दोस्तों के बीच,
रात है वो जो किसी हसीं के साथ हुआ करती है !
सुख और दुःख तो एक सिक्के के दो पहलू है,
कभी धूप तो कभी बरसात हुआ करती है !
क्यूँ परेशां हो "कमल" जो वो तेरे पास नहीं,
जुदाई ही एक अंजाम-ए-मुलाकात हुआ करती है !
(वस्ल=मिलन, इनायत=कृपा, शब-ए-फुरकत=विरह क़ी रात )
दरअसल तब ही कोई बात हुआ करती है !
वस्ल की रात को ही उनकी इनायत ना समझ,
शब-ए-फुरकत भी उन्हीं क़ी सौगात हुआ करती है !
दिन है वो जो गुज़रता है दोस्तों के बीच,
रात है वो जो किसी हसीं के साथ हुआ करती है !
सुख और दुःख तो एक सिक्के के दो पहलू है,
कभी धूप तो कभी बरसात हुआ करती है !
क्यूँ परेशां हो "कमल" जो वो तेरे पास नहीं,
जुदाई ही एक अंजाम-ए-मुलाकात हुआ करती है !
(वस्ल=मिलन, इनायत=कृपा, शब-ए-फुरकत=विरह क़ी रात )
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