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गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

यदि तुम परिश्रम में तत्पर रहे तो,
सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी!

अटल तेरा निश्चय, अटल तेरा व्रत हो,
अटल धारणाएं, अटल तेरा मत हो,
आरूढ़ साहस के रथ पर रहे तो,
सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी ………. १

ध्येय से अपने तू विचलित ना होना,
क्षणिक होती बाधाएं चिंतित ना होना,
बस बढ़ता ही अपने पथ पर रहे तो,
सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी ....... .....२

ना भूले प्रण हम, वक्तव्य से पहले,
ना विश्राम करना, गंतव्य से पहले,
अडिग और निश्चल शपथ पर रहे तो,
सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी ..............३

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

अब तन की छोड़, मन की सुध ले !

तन गिरता जाता है निशदिन,
आयु घटती पल छिन पल छिन ,
मत अगले पिछले जन्म को गिन,
बस इस जीवन की सुध बुध ले!
अब तन की छोड़, मन की सुध ले………. १

ना मन में इच्छा किंचित कर,
बस शुभ  कर्मों को संचित कर,
चंचलता, मन से वंचित कर,
सन्यास लगन के आयुध ले !
अब तन की छोड़, मन की सुध ले…….......२

सुन! मन को अपने पवित्र बना,
शुभ संस्कारों के चित्र बना,
आत्मा को अपना मित्र बना,
कर मन को निर्मल और शुद्ध ले !
अब तन की छोड़, मन की सुध ले……… ..३ 

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

दफअतन खाया था दिल ने, उसकी नज़र के तीर को!
अब तलक ना चैन है, आशिक-ए-दिलगीर को!!
चौंकता हूँ, रोता हूँ, रातों में तन्हाई की,
क्या ज़माने को कहूँ , क्या कहूँ तकदीर को!
उतनी ही पाकीजगी से चाहता हूँ मैं तुझे,
मजनूँ ने लैला को और राँझे ने चाहा हीर को!
ऐ मुसव्विर! छोड़ अब, तू ना जानेगा कभी,
मत समझ कागज़ का टुकड़ा, यार की तस्वीर को!
प्यार करना आसाँ  है पर निभाना टेढ़ी खीर,
याद रखेगा ज़माना, "कमल" की तहरीर को!
(दफअतन=अचानक, आशिक-ए-दिलगीर=व्यथित ह्रदय वाला प्रेमी, पाकीजगी=पवित्रता, मुसव्विर=चित्रकार, तहरीर=लेखन)

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

जब जब मेरी धानी चुनरिया हवा में उड़ उड़ जाये !
.....................................मुसाफिर मुड मुड जाये !!
बालक देखे, वो भी चाहे, लुकाछुपी का खेल करे,
हर जवान का सपना ये ही, दिल से दिल का मेल करे,
आशिक बुड्ढा, पीता हुक्का, करता गुड गुड जाये !
.....................................मुसाफिर मुड मुड जाये !!......१
बच्ची थी, मैं तभी भली थी, फिर क्यूँ हाये जवान हुई,
मुझसे संभलती ना ये जवानी, मुश्किल में मेरी जान हुई,
हाथों से अब शर्म का दामन मुझसे छुड छुड जाये !
 .....................................मुसाफिर मुड मुड जाये !!......२
मेरे हुस्न की चमक दमक को कोई बिजली कोई आग कहे,
जब लहराए ज़ुल्फ़ मेरी तब कोई घटा कोई नाग कहे,
तौबा तौबा किसी के संग ना नैना  जुड़ जुड़ जाये !
.....................................मुसाफिर मुड मुड जाये !!........३ 
ले चल माँझी ! ले चल माँझी !
नाव सजाकर ले चल माँझी !!

पार नदी प्रीतम की नगरिया,
चली मैं लेकर प्रेम गगरिया,
नहीं किसी की लगे नजरिया,
मुझे छिपा कर ले चल माँझी !
नाव सजाकर ले चल माँझी !!........१

जग के बंधन भले ही रोके,
आज रहूँगी पिया की होके ,
चलते समय ना कोई टोके,
मुझे बचा कर ले चल माँझी !
नाव सजाकर ले चल माँझी !!........२

मुझे निभाना है प्रण अपना,
करना पूरा मिलन का सपना,
क्यों अब विरह-ताप में तपना,
मुझे बिठा कर ले चल माँझी !
नाव सजाकर ले चल माँझी !!.........३ 

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

क्या मिला आखिर मुझे, आकर के दिल्ली!
ताने देते हैं दोस्त, उड़ाते हैं खिल्ली!
तौबा तौबा ये दिल्ली की आबोहवा,
खराब होके रहेंगे जिगर और तिल्ली!
तौर भी घटने लगा निगाहों का,
धुएँ की जम गयी आँख में झिल्ली !
उसको पाने का ख्वाब क्या देखा,
लोग कहने लगे हैं शेख चिल्ली!
हम हकीकत से वाकिफ हैं "कमल",
शेर हो बाहर , घर में भीगी बिल्ली !
(आबोहवा=जलवायु, तिल्ली=प्लीहा)

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

ना मिलेगा ढूँढने से, बागबाँ मेरी तरह !
बाग़-ए-उल्फत को बचाता, पासबाँ मेरी तरह!!
एक ये भी दौर है, रोता हूँ अपने आप पर,
एक ज़माना था, नहीं था शादमाँ मेरी तरह!
इश्क है एक भारी पत्थर, मीर साहेब ने कहा,
फिर उठायेगा कोई नातवाँ मेरी तरह !
देख कर शबनम सुबह सोचके ये रह गया,
रोया कितना रात भर आसमाँ  मेरी तरह !
हाँ, "कमल" के बाद भी आयेंगे अहलेदिल बहुत,
पर किसी का ना लुटे कारवाँ मेरी तरह!
(पासबाँ =रक्षक, शादमाँ =प्रसन्न, नातवाँ =दुर्बल,शबनम=ओस, अहलेदिल =दिल वाले )

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

मत माँग मुझसे वापस, तस्वीर ख़ुदारा !
तस्वीर तेरी, के बिना नहीं मेरा गुज़ारा !!
तस्वीर तो तेरी तरह कभी रूठती नहीं,
रहती है जेब में नहीं करती किनारा !
तुम तो जहाँ के काम में मसरूफ रहते हो,
तन्हाईयों में, सिर्फ इक तस्वीर सहारा !
तेरी तरह लबों पे इनकार भी नहीं,
तस्वीर की अदा ने हमको तो है मारा!

कई मायनो में तुझसे, तस्वीर है बेहतर,
तस्वीर करूँ वापस ना "कमल" को गँवारा !
(खुदारा=भगवान् के लिये, मसरूफ=व्यस्त)

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

हम तो माटी के पुतले हैं होती है इबादत क्या जाने !
दुनियादारी में ऐसे फँसे उस रब की अज्मत क्या जाने!!
ये पीर, मौलवी, वाइज सब मालिक के भेद को पा ना सके,
कब हो जाये और कैसे हो मालिक की रहमत क्या जाने!
उसके दस्तों में खलकत है डोरी है चाँद सितारों की ,
हम लाखों ढेर गुनाहों के आका की इज्जत क्या जाने!
बस अपने दिल को पाक बना वो अल्ला बड़ा ही अकबर है,
किस दिल पर उसकी हो जायेहम नजर-ए-इनायत क्या जाने!
है दिल में हमारे याद-ए-खुदा और नाम-ए-खुदा होंटों पर है,
कुछ और "कमल" मालूम नहीं होती है अकीदत क्या जाने !
(अज्मत =महानता ,वाइज =धर्मोपदेशक , दस्त=हाथ, खलकत=संसार, निजाम=प्रबंध, आका=स्वामी, पाक=पवित्र, अकबर=श्रेष्ठ, अकीदत=श्रद्धा )