मेरा महबूब सज धज कर कभी जब साथ चलता है !
मुक़द्दर कोसता है ग़ैर और हाथों को मलता है !!
ना कोई है गरज मय से ना कोई काम मयखाने,
नशा है जो जहाँ भर का, तेरी आँखों में ढलता है !
हुनर है ये तो दिलबर का, सँभाल लेता है जो मुझको,
नहीं काबू कोई रहता कभी जब दिल मचलता है !
कोई आसाँ नहीं है काम उल्फत का निभाना भी,
लहू से सींचना पड़ता तो शज्र -ए-इश्क फलता है !
किसी को क्या मिला ये तो अपनी अपनी किस्मत है,
"कमल" फिर तेरी किस्मत से ज़माना क्यूँ ये जलता है !
(शज्र -ए-इश्क=प्रेम का वृक्ष )
मुक़द्दर कोसता है ग़ैर और हाथों को मलता है !!
ना कोई है गरज मय से ना कोई काम मयखाने,
नशा है जो जहाँ भर का, तेरी आँखों में ढलता है !
हुनर है ये तो दिलबर का, सँभाल लेता है जो मुझको,
नहीं काबू कोई रहता कभी जब दिल मचलता है !
कोई आसाँ नहीं है काम उल्फत का निभाना भी,
लहू से सींचना पड़ता तो शज्र -ए-इश्क फलता है !
किसी को क्या मिला ये तो अपनी अपनी किस्मत है,
"कमल" फिर तेरी किस्मत से ज़माना क्यूँ ये जलता है !
(शज्र -ए-इश्क=प्रेम का वृक्ष )
gazab ki sundarata hai aapki kalam me kamal ji...
जवाब देंहटाएंbahut hi dhanyawwad aapka Abhishek G....bhavishya mein bhi aisa hi likhti rahegi meri qalam..bas aap logon ka sneh aur pyar chahiye !
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