मेरी शायरी का कोई कदरदान क्यूँ नहीं ?
कोई 'वाह' कहने वाला मेहरबान क्यूँ नहीं?
जज़्बात में कमी है या कोई और बात है,
मुझे इन्तिखाब-ए-लफ्ज़ की पहचान क्यूँ नहीं?
भूखा हो सिर्फ जो तेरे शेर-ओ-सुखन का,
ऐसा कोई जहाँ में मेहमान क्यूँ नहीं?
वो हमसफ़र है मेरा, हमराज़ भी तो है,
होते हुए वो सब कुछ हमज़बान क्यूँ नहीं?
कोई नहीं सराहता तुझे "कमल" की कलम,
अपने लिखे पे फिर तू पशेमान क्यूँ नहीं?
(इन्तिखाब-ए-लफ्ज़=शब्द का चयन, सुखन=काव्य,हमज़बाँ=सह भाषी,पशेमान=लज्जित )
कोई 'वाह' कहने वाला मेहरबान क्यूँ नहीं?
जज़्बात में कमी है या कोई और बात है,
मुझे इन्तिखाब-ए-लफ्ज़ की पहचान क्यूँ नहीं?
भूखा हो सिर्फ जो तेरे शेर-ओ-सुखन का,
ऐसा कोई जहाँ में मेहमान क्यूँ नहीं?
वो हमसफ़र है मेरा, हमराज़ भी तो है,
होते हुए वो सब कुछ हमज़बान क्यूँ नहीं?
कोई नहीं सराहता तुझे "कमल" की कलम,
अपने लिखे पे फिर तू पशेमान क्यूँ नहीं?
(इन्तिखाब-ए-लफ्ज़=शब्द का चयन, सुखन=काव्य,हमज़बाँ=सह भाषी,पशेमान=लज्जित )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें