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बुधवार, 10 अप्रैल 2013

बिगड़ता जा रहा अपना हाल दिन-ब -दिन!
सिकुड़ती जाती चेहरे की खाल दिन-ब -दिन!!
कोई कोशिश करे लाखों मौत से बच नहीं सकता,
बढ़ता आ रहा उसका जाल दिन-ब -दिन!
जवानी में भरे थे और रंगत भी गुलाबी थी,
पिचकते जाते आके अब गाल दिन-ब -दिन!
गये वो दिन तेरी रफ़्तार जब दुनिया को भाती थी,
होती जाती है ढीली चाल दिन-ब -दिन!
"कमल" एक दिन वो होगा जा मिलेगी जब ज़मीं से ये,
झुकती जाती कमर की डाल दिन-ब -दिन!

शनिवार, 6 अप्रैल 2013

"कमल" तो सिर्फ शायरी का तालिब है!
उस्ताद तो आज भी मीर-औ-ग़ालिब है!
कौन  पढ़ सका तहरीर-ए-तकदीर,
लिखने वाला बड़ा तेज़ कातिब है!
मौका परस्ती तो देखो इस दिल की ,
कल था मेरी, आज तेरी जानिब है!
रख या फेंक, ये दिल तुझको दिया,
कर वही जो तुझे मुनासिब है!
रश्क करता है माह तेरे रुख से,
जहाँ मैं मुझसे भी बढ़के साकिब है!
(तालिब=इच्छुक, उस्ताद=गुरु, मीर-औ-ग़ालिब=मीर और ग़ालिब: दो प्रसिद्द शायर, तहरीर-ए-तकदीर=भाग्य के लेख, कातिब=लिखने वाला, जानिब=ओर, मुनासिब=उचित, रश्क=ईर्ष्या, माह=चन्द्रमा, रुख=मुख मंडल, साकिब=उज्जवल)

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

रहमदिल है यार मेरा , आजकल मेरे लिये !
आ गया है अच्छा वक़्त, दरअसल मेरे लिये !!
मैं तो सुनता था ज़माना, खार खाता इश्क से,
दोस्तों! देखो जहाँ , गया बदल मेरे लिए!
सोचता हूँ तेरी खातिर, मैं भी कुछ करता चलूँ,
तूने तो सब कुछ किया, जान-ए-ग़ज़ल मेरे लिये !
यार की खिदमत में हूँ, मरने की फुरसत नहीं,
और कोई दिन कर मुकर्रर, अय अजल मेरे लिये !
दिल तो फूला ना समाया रात में  जब ये सुना,
मैं "कमल" के वास्ते हूँ और "कमल" मेरे लिये !
(रहमदिल=दयालु, दरअसल=वास्तव में, खार खाना =शत्रुता रखना, खिदमत= सेवा, मुकर्रर= निश्चित, अजल=मृत्यु )

सोमवार, 1 अप्रैल 2013

हम कहाँ वक़्त जाया करते हैं !
यूँ ही दिन बीत जाया करते हैं!!
मानता हूँ , खाने की चीज़ नहीं,
लोग फिर भी गम खाया करते हैं!
नींद सच्ची वही ख्वाब सच्चा,
आप जब तशरीफ़ लाया करते हैं!
ना आयी रास दुनिया को उल्फत,
जहाँ वाले ज़ुल्म ढाया करते है!
बताते गैर को, "कमल" घर पे है,
क्या एहसाँ हमसाया करते हैं!
(जाया करना=नष्ट करना,हमसाया=पडोसी)