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शनिवार, 15 सितंबर 2012

***सदा-ए-तवायफ***

यूँ तो मुझको भी सजाया गया है दुल्हन की तरह,
मगर अपने पिया के लिए नहीं, ज़माने के लिए !
मैंने चाहा था कली बनूँ किसी दूल्हे के सेहरे की,
मगर कमबख्ती, बनी तो बिस्तर पे बिछाने के लिए !!

भूख और बेबसी से झुलसी हुई आँखों में,
दिल को तस्खीर करने का तिलिस्म ढूँढ़ते हैं!
हम चाहते है ज़माने से कपडा जिस्म ढकने को,
ज़माने वाले कपडा उतारने को जिस्म ढूँढ़ते है !!
(तवायफ=वैश्या, तस्खीर=वशीकरण, तिलिस्म=जादू)

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