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बुधवार, 12 दिसंबर 2012

नौ दो ग्यारह हो गये - कोई कहीं, कोई कहीं !
हो गया गैरों को जब, दोनों की उल्फत का यकीं !!
नौ ग्रहों के नाम से क्यूँ डराता बरहमन,
क्या बिगाड़ेंगे मेरा-कुछ नहीं, कुछ भी नहीं !
नौ मन तेल भी होगा और राधा भी नाचेगी,
हमारे इश्क के सजदे करेंगे आसमाँ - ज़मीं !
नौलखा हार की  उसने कभी भी ना ख्वाहिश की,
डाल दो हार बाँहों का कहता मेरा महज़बीं !
नौ  ही दिन चलता नया और पुराना चलता सौ,
गम नहीं, सदियों पुराना "कमल" का इश्क-ए -रंगीं !

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

किसी ने सच कहा 'एक एहसास' है उल्फत!
खुशनसीब हैं वो जिनके पास है उल्फत!!
शायरी खुद निकलती है उल्फत भरे दिल से,
इसलिए शायरों की तो बड़ी ख़ास है उल्फत!
अपनी पे आ जाये तो उल्फत है बड़ी चीज़,
रूह तक की बुझा देती जो प्यास है, उल्फत!
ऐसे भी लोग कम नहीं इस जहान में,
उम्मीद जिनकी उल्फत और आस है उल्फत!
ये भी सच है सबको ये रास ना आती,
लेकिन "कमल" को आ गयी रास है उल्फत!

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

अव्वल तो किसी को किसी का आशिक खुदा ना करे !
करे तो फिर उनको ज़िन्दगी भर जुदा ना करे!
कहाँ लिखा है ये कि इस प्यारी उल्फत को?
सिर्फ कुँवारे  ही करे और शादीशुदा ना करे!
साथ में लेके चले और छोड़ दे मझधार में,
ज़ुल्म इतना भी किसी पर कोई नाखुदा ना करे!
यार की याद ना आये , पड़ते ही सो जाये,
कोई भी शख्स बिस्तर को इतना गुदगुदा ना करे!
बड़ा एक फर्क मोहब्बत और हवस  में है,
कोई बदनाम "कमल" मोहब्बत को बाखुदा ना करे!
(अव्वल=प्रथम,नाखुदा=मल्लाह,बाखुदा=खुदा क़सम)

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

खुदा का शुक्र है पाया सहारा तेरी उल्फत का!
हुआ कायल ये देखो दिल हमारा तेरी उल्फत का!
बड़ी इतरा रही हैं मेरी नज़रें अपनी किस्मत पर,
मिला इनको है जबसे एक नज़ारा तेरी उल्फत का!
मेरे पहलू में दिल मेरा ना फूला समाता है,
ज़रा सा क्या मिला इसको इशारा तेरी उल्फत का!
देख कर साथ दोनों को उडी रंगत रकीब की,
बड़ा वो था उमीदवार बेचारा तेरी उल्फत का!
"कमल" की है दुआ ये ही कि बस डूब ना जाये,
सितारा मेरी उल्फत का , सितारा तेरी उल्फत का!

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

चीज़ दुनिया में एक से एक अगरचय है!
मगर भाती  नहीं तुझ बिन कोई शय है!!
ज़िन्दगी गर नग्मा है मोहब्बत का,
तू ही सुर तू ही ताल तू ही लय है!
जब भी पीता तो सिर्फ अपने साकी से,
अपना ये अंदाज़-ए -तर्क -ए -मय है!
ना मिले यहाँ, मिलेंगे वहाँ  जाकर,
मिलेंगे पक्का सौ फ़ीसदी तय है!
दिल सी पाकीज़ा जगह और कहाँ,
दिल ही काबा "कमल" दिल शिवालय है!
(अगरचय =यद्यपि , अंदाज़-ए -तर्क -ए -मय=शराब छोड़ने का ढंग )
बिना माँगे पिलाता है, ऐसा मिला साकी !
डाल कर आँख आँखों में, देता पिला साकी!!
आज की शाम मस्तानी नया गुल खिलायेगी ,
फिजा भी है खिली खिली, खिला खिला साकी!
कभी हो जाती है मुर्दा जब ख्वाहिशें दिल की,
मगर ये साकी की खूबी,  देता जिला साकी!
बहुत घूमा ज़माने में मिले तुझसा कोई साकी,
मिले तुम, मैंने मेहनत का, पाया सिला साकी!
"कमल" की क्या खता इस में, ये बहका तेरी मय से है,
मेरी गुस्ताख बातों का, ना कर गिला साकी!

सोमवार, 26 नवंबर 2012

रातें रंगीं हो जाती दिन हो जाते रूपहले!
अगर हम दोनों मिल जाते थोडा और जो पहले!!
एक दूजे के पहलू में काट लेंगे उमर अपनी,
मुबारक दुनिया को उनके ये महल दुमहले!
मुक़द्दस उस घडी का बस एक इन्तिज़ार है हमको,
जब मैं अपनी कह लूँगा और अपनी को तू कहले!
यहाँ के लोग चलते हैं चालें ताश की मानिंद,
ज़रा सा भी मिला मौका डालते नहले पे दहले!
"कमल" की ये गुजारिश है साथ ना छोड़ना मेरा,
नाम सुनकर जुदाई का बड़ा ज़ोरों से दिल दहले!
(मुक़द्दस=पवित्र, मानिंद=तरह, गुजारिश=प्रार्थना)

शनिवार, 24 नवंबर 2012

दिल को अदाओं से बहलाये  रखना!
अच्छा नहीं यार तडपाये रखना!!
दोनों ही हम एक दूजे की जाँ है,
लगता है अच्छा कहलाये रखना!
बिखराके जुल्फें शाने पे मेरे,
रातों को मेरी महकाये रखना!
लगे ना नज़र ज़माने की तुझको,
घूँघट को थोडा सा सरकाये रखना!
लगता है जैसे कई साज़ बजते,
चूड़ी को अपनी खनकाये रखना!
हाँ हो जाये मस्त ये मस्ताना तेरा,
आँखों से मस्ती छलकाये रखना!
होशोहवास मैं जब तक ना खो दूँ ,
आँचल ये रंगीं  ढलकाए रखना!
ना ईमां बचा जो देखा "कमल" ने,
अदा से कमर को बलखाये रखना!

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

हाँ, उसी रोज़ ये हो गया खुलासा था !
वादा नहीं था वो झूठा दिलासा था!!
ये मेरी तकदीर थी या तगाफुल तेरा,
बना नासूर अब ज़ख्म जो ज़रा सा था!
मेरी जानिब ना आया कोई जाम, जबकि,
तुझे मालूम था कौन कितना प्यासा था!
एक ही झटके में हार गया सब कुछ,
वाह री किस्मत क्या तेरा पासा था!
रहा ना अब तो किसी काम का "कमल",
प्यार से पहले मैं भी अच्छा ख़ासा था!
(तगाफुल=लापरवाही,जानिब=तरफ )

बुधवार, 21 नवंबर 2012

आखिर कुबूल हो गयी दिल की मेरी दुआ!
है शुक्र उस खुदा का, दीदार तो हुआ!!
कोना कोना दिल का हुआ रोशन,
जब पड़ने लगी उसके चेहरे की शुआ!
जीत गयी जिंदादिली ज़माने से,
करता भी क्या ये आखिर ज़माना मुआ!
बातों बातों में उसने हामी भर ली,
मानो कि जैसे जीता, हारता जुआ!
उमंगें छूने लगी आसमान "कमल",
आपस में जब लबों ने लबों को छुआ!
(दीदार=दर्शन, शुआ=किरण)

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

मेहनत करके इंसां ने सब कुछ तलाशा है!
बना डाला देवता भी जब पत्थर तराशा है!!
वज़न कोई नहीं है आजकल लोगों की बातों में,
अगर इस पल में है तोला तो अगले पल में माशा है!
ये दुनिया फेंक भी ना दे और खाने भी ना पाएं
ना बनना नीम है तुझको ना बनना बताशा है!
रहना खुश है गर प्यारे याद करले सबक ये तू,
ना रख उम्मीद लोगों से ना करनी कोई आशा है!
"कमल" ने खूब देखे है रंग दुनिया-ए -फानी के,
कभी बनती तमाशाई कभी खुद ही तमाशा है!

सोमवार, 19 नवंबर 2012

हो गया है मेहरबाँ मुझ पे मेरा नसीब अब !
हट गये हैं रास्ते से मेरे सब रकीब अब!!
शाम हो गयी है यारों अपने घर को जाओ तुम।
वक़्त जाया ना करो, शब्-ए-वस्ल है करीब अब!
मेरा दिल लगने लगा है अब तो बाग़-ए -दुनिया में,
जाक गये हैं भाग सब, गाती अंदलीब अब!
जब तेरी सुनता था मैं हो गया वो दौर ख़त्म,
बातें तेरी नासेहा लगती है कुछ अजीब अब!
मिल गयी मुझको तो दौलत प्यार की, वफाओं की,
कौन कहता है बताओ "कमल" है गरीब अब!
(रकीब=दुश्मन या प्रेमिका का दूसरा प्रेमी, जाया=व्यर्थ, शब्-ए -वस्ल=मिलन की रात, जाक=कौआ ,अंदलीब=कोयल,नासेहा=धर्मोपदेशक)

शनिवार, 17 नवंबर 2012

क्या ये दौर वक़्त-ए -नाज़ुक का नहीं?
उसके मुश्ताक हैं सब, इक्का दुक्का नहीं!!
प्यार से समझाओ दिल को बच्चे की तरह,
हर बात का इलाज लात या मुक्का नहीं!
उसने इक निगाह डाली, हमने दिल दे दिया,
बिलकुल , तीर था वो , कोई तुक्का नहीं!
अय मर्ग ज़रा ठहर दो कश  तो मार लूं,
शायद कि दस्तियाब जन्नत में हुक्का नहीं!
"कमल" सा आशिक ना देखा जहाँ में,
महफ़िल में इस बात का यूँ ही रुक्का नहीं !
(मुश्ताक=चाहने वाला, मर्ग =मौत, दस्तियाब=उपलब्ध, रुक्का=शोर)

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

ज़िन्दगी एक बाँसुरी है

चलो माना कि "ज़िन्दगी एक बाँसुरी है "!
प्यार का राग ना गाया तो फिर बेसुरी है!!
बदला ना देना गलत का गलत से,
दे देना माफ़ी बड़ी बहादुरी है!
बदलती ही रहती है रंग अपने दुनिया,
कभी है भली तो कभी ये बुरी है!
चुराके मेरा दिल है कितने खुश वो,
खुश मैं भी, भले चीज़ मेरी चुरी है!
"कमल" बच के रहना ऐसे लोगो से,
मुँह में है राम और बगल में छुरी है!
जब तक तेरा मेरा जहान में वजूद रहेगा !
ये जज्बा-ए -इश्क भी यूँ ही मौजूद रहेगा!!
राह-ए-उल्फत में हम पा ही लेंगे एक दिन,
कारवाँ,  जानिब-ए -मंजिल-ए -मक़सूद रहेगा!
हसरत -ए -दीदार पूरी होते ही बढ़ जाती है,
सिलसिला ये, मिसाल-ए -सूद दर सूद रहेगा!
जब भी हम मिलेंगे तो मिलेंगे खुलकर,
ना कोई तकल्लुफ, ना ऐलान-ए -हदूद रहेगा!
आ जाओ, अभी तो चिराग-ए -चश्म है रोशन,
"कमल" ना रोशनी और ना फिर दूद रहेगा!
(जज्बा-ए -इश्क=प्रेम भावना, जानिब-ए -मंजिल-ए -मक़सूद=इच्छित लक्ष्य की ओर , मिसाल-ए -सूद दर सूद=चक्रवृद्धि ब्याज की तरह, ऐलान-ए -हदूद=सीमा की घोषणा , दूद=धुआं )

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

सखी ! वो क्यों नहीं आये आज?
कुछ भी नहीं हुई थी अनबन,
भूल गये वो प्रीत का बंधन,
किसके लिए रहूँ मैं बनठन,
बिन उनके, सब बिगड़े काज......१
सूना आंगन शैया सूनी,
जलता ह्रदय जैसे हो धूनी,
मन की व्यथा हुई है दूनी,
आज विरह का छाया राज..........२
आयेंगे वो , मत दे दिलासा,
मन भी प्यासा, तन भी प्यासा,
बढती जाये प्रेम-पिपासा,
कहूँ क्या आगे, आये लाज.........३
....रचियता:कमल शर्मा

सोमवार, 12 नवंबर 2012

आठों पहर

आठों पहर अब तेरे ही ख्वाब-औ-ख्याल है!
हमको जुदा करे जो, किसकी मजाल है!!
तेरे बिना अधूरा है फ़साना-ए-ज़िन्दगी,
है मुस्तकबिल तू मेरा और तू ही हाल है!
तू साथ ना था जब तक कोई बात नहीं थी,
अब तेरे बगैर दिलबर जीना मुहाल है!
तेरा इश्क मैंने पाया जो बेशकीमती है,
क्यूँ ना कहूँ मैं ये दिल मालामाल है!
लिखना ग़ज़ल सिखाया मुझे तेरी अदा ने,
कहने लगी दुनिया "कमल" तो कमाल है!
(मुस्तकबिल=भविष्य, हाल=वर्तमान)

कवित्त

*********************************कवित्त*******************************************
मन की उमंग में, ह्रदय की तरंग में, दीयों के संग में, आयी है दीपावली!
आनंद अपार सा, प्रेम का संचार सा, नया संसार सा, लायी है दीपावली!!
निर्धन धनिक को, व्यापारी बनिक को, बेचते मनिक को, भायी है दीपावली!
"कमल" के कवित्त में, जन मानस के चित्त में, रुपया पैसा वित्त में, छायी है दीपावली!!
(दीया=दीपक, धनिक=धनवान. बनिक=बनिया, मनिक=मणि, वित्त=धन)
सभी मित्रों को कमल शर्मा की ओर से दीपावली की ढेर सारी शुभ कामनायें......
***********************************************************************************

शनिवार, 10 नवंबर 2012

हो मुबारक ये दिवाली

रोशनी सूरज से लेकर,
आओ ! जलायें यूँ चिराग!
और जला डाले, दिलों पे,
लग गए जो गम के दाग!!
आओ! अब की बार ये,
खाएं दिवाली पर क़सम!
जब तलक मंजिल नहीं,
रुक के हम ना लेंगे दम!
फूलझड़ी से जगमगाओ,
पटाखों चरखी के शोर से!
हो मुबारक ये दिवाली,
तुमको "कमल" की ओर से !

...इम्तिहाँ मेरा

रोज़ उल्फत में होता इम्तिहाँ मेरा!
समझता कोई नहीं दर्द-ए-निहाँ मेरा !!
महशर में किस से क्या रखूँ उम्मीद,
जब वो अपना ना हुआ यहाँ मेरा!
नहीं है मेरी ज़रुरत किसी को भी,
छुटता जाता है अब कारवाँ मेरा!
दिल का गुल उसने खिलने ना दिया,
तोड़ के खुश है बागबाँ मेरा !
"कमल" जियेजा ज़िन्दगी को यूँ ही,
अब ना ज़मीं तेरी, ना आसमाँ तेरा!

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

...चश्मा

सिर्फ मुझ पर नहीं कितनो पे कहर ढाएगा,
धूप में तेरा निकलना, लगा काला चश्मा!
खड़ा हूँ देर से मैं तेरी गली के नुक्कड़ पर,
तू भी आजा ज़रा, घरवालो को दे चकमा!
साथ में चल तू मेरे शाने पे हाथ रख कर,
बैठने दे, जिसके बैठता है दिल पे सदमा!
दुनिया वालो तुम जिसको समझते हो चाँद,
दरअसल वो है मेरे यार के कमीज़ का तकमा!
"कमल" ने पढ़ लिए चार लफ्ज़ मोहब्बत के,
बरहमन मंत्र पढ़े, शैख़ जी पढ़े कलमा !
(कहर=मुसीबत, चकमा देना=बहकाना, शाने=कंधे, तकमा=बटन,लफ्ज़=अक्षर, बरहमन=पुजारी ब्राह्मण, कलमा=मुस्लिम श्लोक )

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

...चैन मेरा छीन के

जब से बेदर्दी गया वो चैन मेरा छीन के!
ख्वाबों की रातें गयी दिन गये तस्कीन के!!
उलझनों में इश्क की किस क़दर उलझे रहे,
ना ही दुनिया के रहे, ना रहे हम दीन के!
आजू बाजू घूमते थे जो मेरे बन कर के दोस्त,
भेद लेकिन खुल गया साँप थे आस्तीन के!
इस जहाँ ने तो उड़ाया मेरी उल्फत का मज़ाक,
काश दुनिया देख पाती बल मेरे जबीन के!
वक़्त पूरी ज़िन्दगी में वो ही अच्छा था "कमल",
जो गुज़ारा था कभी पहलू में उस हसीन के!
(तस्कीन=आराम, कदर=तरह, दीन=धर्म, बल=सिलवट, जबीन=माथा)

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

कैसे हो?

कैसे हो? पूछा उसने, मुझसे मिलाके हाथ!
मैंने कहा, "दुआ है", थोडा दबा के हाथ!!
जन्नत में घूम रहा हूँ, एहसास ये हुआ,
काँधे पे रख दिया जब, उसने घुमा के हाथ!
फैली हुई सब मस्ती, सिमट आयी एक जा,
सीने से जो लगाया, दोनों फैला के हाथ!
दुनिया ही हिल गयी मेरी, जब उसने ये कहा,
चलते  है अब, अलविदा, हवा में हिला के हाथ!
फिर जान भी छोड़ देगी, "कमल" के जिस्म को,
ना जाना जानेमन, मुझसे छुड़ा के हाथ!
(जा=जगह)

सोमवार, 5 नवंबर 2012

हर वक़्त...

हर वक़्त यूँ ना नसीब को कोसा कीजिये!
कोई ना बड़ा रब से है, भरोसा कीजिये!!
बच्चों की तरह मुश्किल है रिश्ते सँभालना,
रिश्तों को भी ज़रा पाला-पोसा कीजिये!
गर तेरे दर पे आये कोई भूखा प्यासा शख्स,
रूखा या सूखा जैसा हो परोसा कीजिये!
ना ना की बात ठीक नहीं वस्ल की शब् में,
जिद छोड़, कुबूल इल्तिजा-ए-बोसा कीजिये!
बदले हैं सिर्फ शौक़ पर मैं तो हूँ वही,
सुलूक "कमल" के साथ अपनों सा कीजिये!

शनिवार, 3 नवंबर 2012

मैं क्या...

मैं क्या, किसी को भी कर देंगे पागल,
ये मेहंदी के हाथ, महावर के पाँव !
ग़मों से झुलसते को राहत मिलेगी,
जो मिल जाये तेरी जुल्फों की छाँव!
तेरे ख्वाब, तेरे ख्याल, तेरी ही यादें,
लो बसने लगा है मेरे दिल का गाँव!
तेरी बोली प्यारी कोयल की कुहू सी,
ज़माना है कौआ करे काँव-काँव !
ये मेरी है किस्मत कि जीतूँ या हारूँ,
"कमल" ने लगा डाला उल्फत का दाँव!

कोई नहीं इस जहान में

मेरे यार जैसा कोई नहीं इस जहान में !
कम है, कितना भी लिखूँ उसकी शान में!!
हो जाये वो खफा तो निकल जाती मेरी जान,
जो हो जाये मेहरबाँ, जान आ जाये जान में!
गर बात करूँ उस से तो करता ही रहूँ मैं,
एक शहद सा टपकता उसकी ज़बान में!
दुनिया में हसीं देखे हैं यूँ तो बेशुमार,
पर बात ही अलग उसकी आन-बान में!
गर वो नहीं , "कमल" का भी वजूद कुछ नहीं,
कोई रस नहीं शेर,ग़ज़ल और दीवान में!
(वजूद=अस्तित्व, दीवान=काव्य-संग्रह)

बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

...उसके यहाँ

मेरे अरमानों की कीमत कुछ नहीं उसके यहाँ !
अब मैं टुकड़े टूटे दिल के लेके जाऊँ कहाँ !!
क्या खबर थी इश्क में आयेगा ऐसा भी दौर,
है जहाँ इकरार बसता, इनकार भी होगा वहाँ !
बदनसीबी ना कहूँ तो क्या कहूँ फिर मैं इसे,
पास में मंजिल के जाके लुट गया है कारवाँ !
दुनिया की नज़रों से छुपके था बसाया घोंसला,
बिजलियों को है बताया किसने मेरा आशियाँ!
वक़्त ही कर देगा इसको खत्म अब अय "कमल",
फासला जो थोडा सा आ गया है दरमियाँ !

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

...किताब में

प्यार अब तो रह गया कहानी में, किताब में!
दब गया है सहरा में , डूब गया चिनाब में!!
अपने तो नसीब में शायद लिखे थे खार ही,
लेने वाले ले गये जो खुशबू थी गुलाब में!
औरों से जब वो मिला तो मिला दिल खोल कर,
मेरी किस्मत ये रही मुझसे मिला नकाब में!
भूले से आ जाता हूँ जो मैं साहिल पर कभी,
फिर पटकती मौज-ए-वक़्त गम के ही सैलाब में!
कहो "कमल" कैसे हो? पूछा उसने ख़त में ये,
कोई बतलाओ ज़रा क्या लिखूँ जवाब में!
(सहरा=रेगिस्तान जहाँ मजनूँ मारा मारा फिरता था, चिनाब=वो नदी जिस में सोहनी महिवाल डूब गए थे, खार=काँटे, साहिल=किनारा, मौज-ए-वक़्त=समय की लहर, सैलाब=बाढ़)

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

किस्से...

किस्से नहीं है रास दुनिया-ए-अजीब के!
सुनने पड़े हैं ताने अक्सर हबीब के !!
था वादे का वो पक्का और पहुंचा वक़्त पर,
पर मेरे घर ना होकर, घर पर रकीब के!
रातें हैं कटती तन्हा दिन भी गुज़रता खाली,
शब्-औ-रोज़ हो गए गिरफ्त में नसीब के!
खुद ही दिया था उसने अपने निकाह का ख़त,
अरमान यूँ लुटे है देखो गरीब के!
अब बख्त है मुखालिफ तो "कमल" के रिश्तेदार,
सब हो गए हैं दूर जो थे करीब के !
(हबीब=मित्र, रकीब=शत्रु, शब्-ओ-रोज़=रात-दिन, बख्त=भाग्य, मुखालिफ=विपरीत)

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

...मेरा दिल ये आ गया

लो फिर किसी हसीन पर मेरा दिल ये आ गया !
अदाएं उसकी भा गयी, जलवा उसका भा गया!!
मिलाकर आँखों से आँखें बात करना वो ज़ालिम का,
कैफियत कम नहीं जिसकी नशा कुछ ऐसा छा गया,
झलकता साफ़ था उसका बदन का एक एक वो ख़त,
तंग वो पैरहन उसका क़यामत मुझ पे ढा गया !
मिला जब हुस्न ऐसा है करूँगा इश्क जी भर के,
ये माना इश्क ख़ूनी है अच्छों अच्छों को खा गया !
"कमल" तो मर ही चुका था गम-ए-दुनिया की चोट से,
रोज़ कुछ और जीने का बहाना फिर से पा गया !
(कैफियत=आनंद, ख़त=रेखा-चिह्न, पैरहन=पहनावा, क़यामत=प्रलय, रोज़=दिन)

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

...समां चुके हो तुम

आँखों में पहले, फिर दिल में, अब रूह में समां चुके हो तुम !
ना उतरेगा ये प्यार का रंग, इस तरह से रमा चुके हो तुम !!
ये सोच के मैंने चूमा है, अपने हाथों को कई दफा,
ये हाथ वही जिन में अपने हाथों को थमा चुके हो तुम !
हरदम माँगूं बस यही दुआ, दम निकले तो तेरी बाँहों में,
अपने दम से मेरे दिल की दुनिया दमदमा चुके हो तुम !
क्या ख़ाक कमाया दुनिया में, इज्जत ना कमाई जो तुमने,
कहने को लाख करोड़ सही कितना ही कमा चुके हो तुम !
ये आज की तेरी ग़ज़ल "कमल" रखेगा ज़माना बरसों याद,
अपने शेरों से रंग ऐसा महफ़िल में जमा चुके हो तुम !

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

मेरा जनाज़ा...

मेरा जनाज़ा गुज़रता जो उसके मकान से निकला !
पूछते हैं, किसका है? जो इतनी शान से निकला !!
मुझको एहसास फिर भी गुलिस्ताँ का हुआ,
भले ही काफिला मेरा बियाबान से निकला!
कभी खाली ना गया ये मेरा दावा है,
जब कोई तीर उस शोख की कमान से निकला !
सिर्फ रह जायेंगे बस स्याही भरे ही पन्ने,
जो उसका ज़िक्र-ओ-नाम मेरे दीवान से निकला!
शेर कहते है ये उसको दुनिया वाले.
मस्ती में जो जुमला "कमल" की ज़बान से निकला !
(शोख=चंचल लड़की, दीवान=काव्य-संग्रह, जुमला=वाक्य)

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

याद है ?

खेतों के वो रास्ते और पगडंडी ! याद है ?
प्यार की गाडी को जब दी थी झंडी ! याद है?
सुबह से ही रहता था हमको इन्तिज़ार शाम का,
और फिर तेरा मिलने आना सब्जी मंडी ! याद है?
तेरा वो नज़रें झुकाना और वो मुस्काना फिर,
मेरा भी भरना धीरे से आहें ठंडी ! याद है?
याद कर जब रात में बैठे थे छुपके कोने में,
आके वो चौकीदार का खड्काना डंडी ! याद है?
दुनिया की नज़रों से दूर प्यार को रखना "कमल"
करती नफरत प्यार से दुनिया घमंडी ! याद है?

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

...मेरा मुस्तकबिल है तू !

तेरा माजी जो भी हो मेरा मुस्तकबिल है तू!
फैसला ये दिल का है, प्यार के काबिल है तू!!
कच्चे पक्के रास्तों पर अब तलक भटका किया,
हो गया बेफिक्र मैं मिल गयी मंजिल है तू!
सादगी चेहरे पे और आँखों में शर्म-ओ-हया,
झूठा है, जो कहता है कि कातिल है तू!
रह नहीं सकता हूँ जैसे जिंदा मैं बिन साँस के,
इस तरह से ज़िन्दगी में हो गयी शामिल है तू!
प्यार मुझको क्या हुआ कहने लगे है दोस्त सब,
अय "कमल" अब हो गया हमसे क्यूँ गाफिल है तू!
(माजी=अतीत, मुस्तकबिल=भविष्य)

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

मुक़द्दर...

मुक़द्दर राह-ए-जीस्त में कैसे मोड़ देता है !
पकड़ता एक है दामन, दूसरा छोड़ देता है !!
लोग मिलते ही रहते हैं कभी कैसे कभी कैसे,
कोई दिल जोड़ देता है, कोई दिल तोड़ देता है !
ज़माना भी यहाँ पर चाल चलता है दोरंगी,
कभी रखता छुपाके कभी भांडा फोड़ देता है !
ये भी सच है कि मंजिल मिलती उसको है,
इरादा करके जो पक्का लगा दौड़ देता है !
"कमल" जब भी करो प्यार सच्चा ही करना,
सच्चा प्यार ही बन्दे को रब से जोड़ देता है !
(राह-ए-जीस्त=जीवन-मार्ग )

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

मेरा दावा...

यही है मेरा दावा भी यही मेरा यकीन है !
कि मेरे यार के जैसा नहीं कोई हसीन है !!
फैसला हो गया होगा अब तो फरिश्तों में,
कि बढ़के हूर-ए-जन्नत से कहीं हूर-ए-ज़मीन है !
रुख-ए-रोशन के क्या कहने चाँद भी रश्क करता है,
फलक के चाँद से उजला मेरा माहेजबीन है !
ग़जल कैसे ये लिखता मैं, ना होते वो ज़माने में,
उन्हीं के दम से ही यारों मेरी दुनिया रंगीन है !
नहीं देखा नहीं देखा, हुस्न है या क़यामत है,
"कमल" तू ही नहीं, सब ही, कहते आफरीन है !
(रुख-ए-रोशन=ओजस्वी मुखमंडल, रश्क=ईर्ष्या, फलक=आकाश, माहेजबीन=चाँद जैसे मस्तक वाला, क़यामत=प्रलय, आफरीन=शाबाश, वाह )

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

लिखने की आदत...

लिखने की आदत मेरी गंदी सही !
आज ग़ज़ल नहीं, तुकबंदी सही !!
आ दोनों मिलके दुआ माँगते हैं,
मैं बंदा खुदा का, तू बंदी सही !
ना करो तर्क-ए-ताल्लुकात हमसे,
दोस्ती ना सही, भाई बंदी सही !
जलवे देखो मगर अदब के साथ,
हुस्न की इश्क पे पाबंदी सही !
जान भी दे दे "कमल" उनको,
भले ही जाती है मंदी सही !!
(तर्क-ए-ताल्लुकात=सम्बन्ध - विच्छेद )

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

...सिर्फ सात नहीं

रहूँगा हर जनम मैं साथ , सिर्फ सात नहीं !
अलग होती हुस्न से इश्क की जात नहीं !
नहीं डूबेगा, नहीं डूबेगा, सफीना-ए- इश्क मेरा,
सातों समंदर मिल के डुबो दे इतनी औकात नहीं !
ख्याल-ए-जुदाई भी तुम अपने दिल में ना लाना,
सातों दिन अपने हैं, एक दिन या एक रात नहीं !
एक प्यार के ही रंग में सारे रंग है शामिल ,
सातों रंग धनुक के करते क्या इशारात नहीं !
देखना प्यार "कमल" अपना  बुलंदी पे जायेगा,
सातों आसमानों से आगे, वरना कोई बात नहीं !
(जात=जाति, सफीना-ए-इश्क=प्रेम की नाव, इशारात=संकेत, धनुक=इन्द्र धनुष )

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल

क्या रदीफ़,काफिया, मतला, बहर, मकता है!
जिसको इल्म है वो ही ग़ज़ल लिख सकता है !
थक के जो बैठ गया उसे मंजिल कहाँ नसीब,
सही मुसाफिर ना मंजिल से पहले थकता है!
छकते होंगे तेरे मयकश तेरी महफ़िल में,
ये निगाहों से पीने वाला कहाँ छकता है !
सीख लो कोई हुनर मेरी मानो तो प्यारों,
एक अच्छा हुनर कई ऐबों को ढकता है!
हर एक शेर लिखा खिरद से सलाह लेकर,
भले ही लोग कहे "कमल"  तो बकता है !
(खिरद=बुद्धि )

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

...जुड़ गया

आशिकों में उसके मेरा भी नाम जुड़ गया !
उसके दिलेखास से मेरा दिलेआम जुड़ गया !!
कुछ जल्दी पहुँच जाता हूँ अब उसकी गली मैं,
रफ़्तार बढ़ गयी मेरी या रस्ता सिकुड़ गया!
उसकी नज़र का जादू नहीं है तो क्या है ये,
दिल उसका हो गया और मुझसे बिछुड़ गया!
उम्मीदवार कितने ही थे उसके जलवों के,
ज़हेनसीब उसका रुख मेरी जानिब मुड गया !
है रंग गया "कमल" तो उसके ही रंग में अब,
गैरों के चेहरे देखो, रंग ही है उड़ गया !!
(दिलेखास=महत्वपूर्ण ह्रदय, दिलेआम=साधारण ह्रदय, रफ़्तार=चाल, ज़हेनसीब=अहोभाग्य, रुख=झुकाव, जानिब=तरफ)

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

...रोता हूँ

याद आता है यार...रोता हूँ !
किया था क्यूँ ये प्यार...रोता हूँ !!
दिल को एक बार मैं लगा बैठा,
दिल को अब बार बार...रोता हूँ!
बड़ा संभाल के रखा था दामन,
हो गया तार तार...रोता हूँ!
अब तो तेरा ही बस सहारा है,
मेरे परवरदिगार...रोता हूँ!
आँसू आते हैं तो रुकते ही नहीं,
"कमल' मैं जार जार ...रोता हूँ !

सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

वो दिन...

वो दिन ख़ाक दिन जो यार से बात ना हो!
खाली सा वक़्त गुज़रे और मुलाक़ात ना हो!!
गुज़रता है एक एक पहर क़यामत की तरह,
ना, किसी के नसीब में ऐसी रात ना हो!
दिल की चाहत ना ज़माने में कभी जाहिर हो,
रहे ख्याल ये, रुसवा तेरे जज़्बात ना हो!
यार हो साथ में और सोये मुँह फेर कर,
इस क़दर पैदा ज़िन्दगी में हालात ना हो!
"कमल" तो खुश है यार मिलनसार मिला,
ज़िन्दगी बेकार लगे जो उसका साथ ना हो!

शनिवार, 29 सितंबर 2012

ख़त...

जब तक मेरे महबूब का ख़त नहीं आया!
दिल को सुकून मेरे किसी सूरत नहीं आय!!
क्यूँ नहीं दिया बोसा मुझे गैर के आगे,
ना, मुझको मज़ा-ए- अदावत नहीं आया!
तुमको भी क्या आज ही रखना था रोज़ा,
या फिर मुझको सलीका-ए-दावत नहीं आया!
बस मैं हूँ तुम हो और कोई तीसरा न हो,
क्यूँ ऐसा वक़्त-ए-खूबसूरत नहीं आया!
कब तलक चलेगा काम यूँ ही खतों से "कमल",
शब-ए-विसाल का क्या मुहूरत नहीं आया!
(सूरत=प्रकार, बोसा=चुम्बन,मज़ा-ए-अदावत=शत्रुता का आनंद, रोज़ा=व्रत,शब-ए-विसाल=मिलन की रात, मुहूरत=मुहूर्त)

तुम...

मैं ये नहीं कहता कि वादा फरामोश हो जाते हो तुम!
हाँ, दिखाके झलक, ज़रूर रूपोश हो जाते हो तुम!!
सिमट आई हो जैसे सारी दुनिया ही मेरी बाँहों में,
जब कभी शरमाते से हम आगोश हो जाते हो तुम!
एक तो मिलता ही कम है वक़्त बात करने को,
ऊपर से, बात करते करते खामोश हो जाते हो तुम!
संभाल लीजिये ये अपना ढलता हुआ आँचल,
ना कहना फिर मुझे कि मदहोश हो जाते हो तुम!
तुम्हें मालूम नहीं कि "कमल" कैसे जिंदा है,
कहीं गायब, लेके, ये मेरे होश हो जाते हो तुम!
(वादा फरामोश=प्रण तोड़ने वाला, रूपोश=अदृश्य)

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

ना माँग...

रातें जो तन्हा गुजारी हैं उनका हिसाब, ना माँग!
सोचते ही उमड़ता आँखों में सैलाब, ना माँग!!
रात क्यूँ सोये नहीं ये तो बताओ ज़रा,
दे ना पाऊँगा ऐसी बातों का जवाब, ना माँग!
वो किताब जिसमें शब-ए-गम के किस्से है मेरे,
मुझे बड़ी अजीज़ है वो किताब, ना माँग!
माँगने से तो ना मिलती ये मोहब्बत ज़माने में,
हो जाती है, जिसको होनी हो दस्तियाब, ना माँग!
वफ़ा, वो भी ज़माने से, क्या "कमल" तुम भी.
ये सब पुरानी बातें हैं दिल-ए-बेताब, ना माँग!
(सैलाब=बाढ़, अजीज़=प्रिय, दस्तियाब=उपलब्ध )

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

उसका शबाब

लो आज बतलाता हूँ मैं कैसा उसका शबाब है !
खुद तो गुलाब है ही वो, उसकी हर शय गुलाब है !!
गुलाब की सी रंगत है उसके गुलाबी गालों की,
खिलती जवानी गुलाब सी, करती ईमां खराब है !
गुलाब-जल से कम नहीं उसके पसीने की बूँदें,
झलक जाती है माथे पर, कभी जब उठता नकाब है !
गुलाब की डाली सी झुकती  वो शानो पे गरदन ,
शरमाता उसके रुख से, फलक का माहताब है !
गुलाब की पंखुड़ी है उसके दो प्यारे से होंट,
"कमल" वो आँखें है उसकी या जाम-ए-शराब है !
(शय=वस्तु, शानो=कन्धों, रुख=मुख मंडल, फलक=गगन, माहताब=चंद्रमा )

बुधवार, 19 सितंबर 2012

***ग़ज़ल***

अब तो उसके भी दिल में तमन्ना जाग उठी !
जितनी इधर थी, उधर भी उतनी ही आग उठी !!
जब से आँखों में बसी है उसकी चाँद सी सूरत,
नींद भी क्या करती बेचारी भाग उठी !
क्या बताऊँ ? कैसी कैसी उठती है तमन्नाएं दिल में,
यूँ समझिये हर वक़्त जैसे मस्ती-ए-फाग उठी !
होने को हो चुकी है उम्र पार चालीस के,
मगर इस दिल में ना हसरत-ए-बैराग उठी !
अजब ही चीज़ है प्यार का एहसास "कमल",
लगता है ज़िन्दगी भी गुनगुनाती राग उठी !
(मस्ती-ए-फाग=फाल्गुन का आनंद, हसरत-ए-बैराग=वैराग्य की इच्छा )

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

***ग़ज़ल***

दिल-ए-गरीब को अब दीदार की भीख, दे दे ज़रा !
और मुमकिन हो तो मिलने की कोई तारीख, दे दे ज़रा !!
अपना अफसाना भी शाही अफसानों से कम तो नहीं,
किस्सा-ए-पाक उनको, जो लिखते तवारीख, दे दे ज़रा !
प्यार यूँ करते हैं और यूँ निभाते हैं इसको,
आने वाली नस्ल को, चल, ये भी सीख, दे दे ज़रा !
अब के आओ तो रकीबों के घर के आगे से आना,
बड़े सुकून में है वो, उनको थोड़ी चीख, दे दे ज़रा !
"कमल" की एक ही ख्वाहिश मेरे हाथ में तेरा हाथ रहे,
हाथ ये, जिस में किस्मत रही है दीख, दे दे ज़रा !
(किस्सा-ए-पाक=पवित्र कथा, तवारीख=इतिहास, नस्ल=पीढी, रकीब=दुश्मन, प्रेमिका का दूसरा प्रेमी )

सोमवार, 17 सितंबर 2012

***ग़ज़ल***

छोटी छोटी बातों से होते ना यूँ उदास है !
दूर हूँ तो क्या हुआ मेरा दिल तो तेरे पास है !
जो भी बातें आयें दिल में, रखना उन्हें संभाल के,
जिस दिन मिलेंगे, कर लेंगे, जितनी भी बातें ख़ास है !
हम सबक ले सकते हैं, चंदा से और चकोर से,
दूर वो भी बहुत है लेकिन फिर भी आस है !
तेरी भी मजबूरियां है और मेरी भी सनम,
वरना फिर तुम ही कहो किसको जुदाई रास है !
दूर रहने से "कमल" दो बातें होना पक्का है,
याद भी आती है ज्यादा, दिल की भी बढती प्यास है !

रविवार, 16 सितंबर 2012

***ग़ज़ल***

कौन कहता है कि मैं शराब नहीं पीता !
हाँ ! ये सच है, ऐसी वैसी खराब नहीं पीता !!
पिला ही दी उसने मख्मूर निगाहों से,
नहीं कहा गया कि जनाब नहीं पीता !
थोड़े दस्तूर अलग हैं अपने इस ज़माने से,
मौका-ए-जश्न पीता हूँ, दौर-ए-इज्तिराब नहीं पीता !
एक दो की बात तो मैं करता नहीं हूँ खैर,
वरना कौन है जो अहद-ए-शबाब नहीं पीता !
आगे चलकर हिसाब कोई मुझसे मांग ना ले,
इसलिए "कमल" कभी बेहिसाब नहीं पीता !
(मख्मूर=मादक, दस्तूर=नियम, मौका-ए-जश्न=सुख का अवसर, दौर-ए-इज्तिराब=दुःख की घडी में, अहद-ए-शबाब=यौवन काल में )

शनिवार, 15 सितंबर 2012

***बेरोज़गारी***
अफ़सोस ! मुझे नौकरी ना मिली !
अब सुबह शाम है फिक्र यही किसी तरह नौकरी मिल जाये,
जो मेहनत करी पढाई में हो मज़ा मुझे हासिल जाये,
मुझको सर्विस सी परी ना मिली.......१
जो इल्म-ओ-हुनर की क़दर करें वो लोग गए सब दुनिया से,
खाली बैठा कब तक मैं रहूँ ले मुझे उठा रब दुनिया से,
ये दुनिया मुझको भरी ना मिली.......२
हो गये सेलेक्ट इंटरव्यू  में वो जिनकी सिफारिश अच्छी थी,
हम तो हो फेल चले घर को माना कि ख्वाहिश अच्छी थी,
मुझे शाख-ए-तमन्ना हरी ना मिली....३

***सदा-ए-तवायफ***

यूँ तो मुझको भी सजाया गया है दुल्हन की तरह,
मगर अपने पिया के लिए नहीं, ज़माने के लिए !
मैंने चाहा था कली बनूँ किसी दूल्हे के सेहरे की,
मगर कमबख्ती, बनी तो बिस्तर पे बिछाने के लिए !!

भूख और बेबसी से झुलसी हुई आँखों में,
दिल को तस्खीर करने का तिलिस्म ढूँढ़ते हैं!
हम चाहते है ज़माने से कपडा जिस्म ढकने को,
ज़माने वाले कपडा उतारने को जिस्म ढूँढ़ते है !!
(तवायफ=वैश्या, तस्खीर=वशीकरण, तिलिस्म=जादू)

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

कल रात बहुत याद आये तुम !
कभी खो जाते कभी पाये तुम !!
बस तेरे सिवा कुछ याद नहीं,
जिस दिन से मुझको भाये तुम !
होकर बेहोश मैं भले गिरूँ,
आँचल रहना ढलकाए तुम !
कल रात का आलम क्या कहिये,
हस्ती पे रहे मेरी छाये तुम !
एक और करम "कमल" पे हुआ,
तशरीफ़ ख्वाब में लाये तुम !
गजब का हुस्न जो देखा, है अजब हालत मेरी !
रिंद की सी, ऐसे ही नहीं, बेसबब हालत मेरी !!
खुद ही लगता है मुझे हो गया आजार कोई,
गिरती जाती है दिन रात, हाँ अब हालत मेरी !
मेरे जो दोस्त पुराने है वो बता सकते हैं,
इतनी मदहोश सी पहले थी कब हालत मेरी !
मैं ही पागल हुआ या कि फिर ज़माना है ये,
देख, करने लगे किनारा, है सब हालत मेरी !
मिला दे शोख से उस या उठा ले दुनिया से,
"कमल" कहता है, संभाल, अय रब हालत मेरी !
(रिंद=पियक्कड़, बेसबब=बिना कारण के, आजार=रोग, शोख=चंचल लड़की )
गुस्सा आता भी है उसको तो ज्यादा देर नहीं !
लाजवाब शख्स, ना देखा ऐसा दुनिया में कहीं !!
खफा भी होता है वो लेकिन कभी कभी,
जल्द ही मान भी जाता है वो मेरा माहेजबीं !
जलते होंगे फ़रिश्ते भी देख कर मेरे मुक़द्दर को,
हूर-ए-जन्नत से कम तो नहीं, मेरी हूर-ए-ज़मीं!
एक खासियत और भी मेरे महबूब की है,
चाहे मैं कुछ भी कहूँ, करता वो एक दम से यकीं !
वफ़ा की, हुस्न की, सादगी की मिसाल है वो,
"कमल" हजारों में क्या, लाखों में नहीं ऐसा हसीं !
खा जाता प्रेम को, अंतराल !
माना कि ये संभव है नहीं, हर समय रहे कोई बाँहें डाल !
चाहे हो कुछ पल के लिए, लेकिन प्रतिदिन समय निकाल !!
निश दिन साथी से बात करो, आ ना पायेगा वियोग-काल !
नहीं तो झुलसाके रख देगी, ऐसी होती ये विरह-ज्वाल !!
भूमि ह्रदय की काँप उठती, आ जाता दुखों का जब भूचाल !
सब दुखों से बढ़कर विरह का दुःख, बन जाता जी का जो जंजाल !!
लेकिन इस दुःख का हल भी है, जो फैले नहीं ये वियोग-जाल !
बस अपने प्रेम में "कमल" कभी, आने मत देना अंतराल !!
तेरी यादों को हमराही भला कैसे भुला दूं मैं !
तमन्ना जो जगाई थी उन्हें फिर क्यूँ सुला दूं मैं !!
बिताया था जो तेरे संग वक़्त वो याद आता है,
अगर हो हाथ में मेरे वक़्त वापस बुला दूं मैं !
ये आँखें याद करती हैं तेरी प्यारी सी वो आँखें,
जिन आँखों में बसे हो तुम उन्हें क्यूँ कर रुला दूं मैं !
ख्याल आते मेरे दिल में कभी कैसे कभी कैसे,
बनाकर झूला बाँहों का तुझे फिर से झुला दूं मैं !
चले आओ चले आओ ये दिल भी घर तुम्हारा है,
"कमल" अब दिल का दरवाज़ा, छोड़ क्यूँ ना खुला दूं मैं !
खुदा का शुक्र है, रंगीं ज़माने फिर से आ गये !
लबों पे जिन पे आहें थी, तराने फिर से आ गये !!
वो जीना ख़ाक जीना था कि हम जीते थे मर मर के,
लो देखो हमको जीने के बहाने से फिर से आ गये !
लेकर हाथ हाथों में चलेंगे जब चमन में हम,
कहेगा बागबाँ ये ही, दीवाने फिर से आ गये !
जवानी तेरी सोना है, तुम्हारे जलवे चाँदी है,
मैं फिर क्यूँ ना भरूँ दामन खजाने फिर से आ गये !
और भी हो गये पैने तीर उसकी निगाहों के,
"कमल" अपना संभालो दिल निशाने फिर से आ गये !
बाद मुद्दत के आज उसका पयाम आया !
दिल को सुकून रूह को आराम आया !!
बेकार कहाँ जाता है आशिक का तड़पना,
आज मेरा भी तड़पना मेरे काम आया !
एहसास हुआ तेरा चेहरा मेरे शाने पर है,
जब कभी चाँद नज़र लब-ए-बाम आया !
याद आ गए तेरी वफाओं के किस्से,
जब किसी महफ़िल में तेरा नाम आया !
आज की रात कट जाएगी अच्छे से "कमल"
क्यूँ नहीं? पैगाम जो वक़्त-ए-शाम आया !
(पयाम=सन्देश, सुकून=शांति, शाने=कंधे, लब-ए-बाम=मुंडेर )
आँखों को छलकने ना दूँगा अश्कों को अपने पी लूँगा !
गर ज़िन्दगी तेरी मर्जी यही ऐसे ही तुझको जी लूँगा !!
ऐ मेरे मुक़द्दर कर ले ज़ुल्म जितने भी तू कर सकता है,
ना ज़ुबां से अब निकलेगा 'उफ़' मैं अपने लबों को सी लूँगा !
ये दिल था कभी जो चाहता था खुशियाँ ही हो बस चारों तरफ,
अब आदत इसकी बदल गयी कहता है बस गम ही लूँगा !
कितने भी सितम हो दुनिया के तेरा नाम ना लेकिन भूलूँगा,
तब भी तेरा नाम मैं लेता था और साँसों में अब भी लूँगा !
तुम कुछ भी इसको अब समझो पर "कमल" की फितरत ऐसी है,
दोस्तों की जफा मंज़ूर मुझे पर दुआ ना दुश्मन की लूँगा !
ऐसा नहीं है दोस्त कि मुझको गम नहीं !
परेशान तू है तो मैं भी कुछ कम नहीं !!
मैंने माँगी है दुआ तेरे खुश रहने की,
कौनसा दिन है जब हुआ सर ख़म नहीं !
आँसू मेरे भी निकलते हैं तेरी परेशानी पर,
रहे दर्द से तेरे बेखबर ऐसे तो हम नहीं !
मैं अगर साज़ हूँ तो तू है सरगम मेरी,
क्या वजूद साज़ का जो साथ सरगम नहीं!
सोचते क्यूँ हो कि बदल गया है "कमल",
ऐसे ख्याल तो बिल्कुल लाना हमदम नहीं !
(ख़म होना=झुकना, वजूद=अस्तित्व)
पैगाम भेजने की आदत जारी रखना !
ना भूल जाना हमें याद हमारी रखना !!
करार मेरा भी अब मेरे पास नहीं,
बरक़रार तुम भी तो बेक़रारी रखना !
आऊँगा आज रात को मैं ख्वाबों में,
हमसे मिलने की ज़रा तैयारी रखना !
थोडा मसरूफ तो हूँ पर बेवफा नहीं,
मुश्किल बड़ा है निभाये यारी रखना !
गम-ए-दुनिया ने दबा दिया है "कमल",
ऐसे वक़्त में अपनी गमगुसारी रखना !
(मसरूफ=व्यस्त, गमगुसारी=सहानुभूति )

मेरे हमदम तेरे बगैर....

रहा जाता नहीं है अब, मेरे हमदम तेरे बगैर !
उधर से तुम चलो थोडा, इधर से मैं बढाऊँ पैर !!
ज़माना क्या करेगा गर मोहब्बत सच्ची है अपनी,
रहेंगे मिल के हम दोनों, लगाये लाख पहरे गैर !
मेरा दिल तो ये कहता है कि वो सुबह भी आएगी,
कि राहें होगी उल्फत की, और हम तुम करेंगे सैर !
हमारा मिलना ना मिलना छोड़ देते मुक़द्दर पर,
जो होगा देखा जायेगा, भला इस में ही है अब, खैर !
बताते आग का दरिया मोहब्बत को जहाँ वाले,
"कमल" अब फैसला तेरा, चाहे डूब चाहे तैर !
कौन कहता है अजनबी हो तुम,
मैंने हर जनम तुमको चाहा है !
कभी शाहजहाँ कभी मुमताज थे हम,
कभी शीरी कभी फरहाद थे हम,
हमसफ़र, हमनवा, हमराज़ थे हम,
वादा हर बार मैं निबाहा है..........१
कहा बदली को मैंने काजल है,
कहा बिजली को मैंने पायल है,
कहा फूलों को मैंने आँचल है,
मैंने हर शै में तुम्हें सराहा है.........२

मेरे हाथों से छुट गया है दिल,
तेरे कूचे में लुट गया है दिल,
तेरी खुशियों में खुश हुआ है दिल,
तेरे गम में दिल-ए-"कमल' कराहा है..३
और भी चाहने लगा हूँ मैं उसकी अदाओं को !
हुस्न ने माफ़ किया इश्क की ख़ताओं को !!
बढ़ता ही जा रहा है प्यार रोज़-ब-रोज़,
नज़र ना लगे किसी की मेरी वफाओं को !
भुलाके रंज-ओ-गम, हम आगोश हो ही गए,
अलविदा कह दिया ज़माने की बलाओं को !
अँधेरे दिल का उजाला है उसका चाँद सा चेहरा,
और क्या नाम दूं उसके रुख की शु आओं को !
सच्ची आह हो दुआ हो तो असर होता ही है,
खुदा भी टाल ना सका "कमल" की दुआओं को !
आज मैं अपनी ९९ रचनायें लिख चुका हूँ !आप सभी के प्रेम, स्नेह और उत्साह वर्धन से ही मैं यहाँ तक पहुँच पाया !आशा करता हूँ कि आगे भविष्य में भी मुझे आप सभी का प्रेम मिलता रहेगा ! अब आप सबके सम्मुख है मेरी १०० वीं रचना.........
सौ में से एक होता कामयाब इश्क में !
निन्यानवें तो मिलते हैं खराब इश्क में !
आसाँ नहीं है इतना ये इश्क का सफ़र,
आते हैं मोड़ कितने ही जन
ाब इश्क में !
कहते हैं, नहीं छुपता छुपाने से इश्क ये,
रहता है आके एक दिन इंकलाब इश्क में !
कभी है ख़ुशी भी मिलती गर अच्छा बख्त हो,
अक्सर तो मिलता है इज्तिराब इश्क में !
गर खार ही मिले हैं "कमल" रख संभाल के,
ये तो नहीं ज़रूरी मिले गुलाब इश्क में !
(इन्कलाब=परिवर्तन, बख्त=भाग्य, इज्तिराब=कठिनाई, खार=कांटें )
रात का रंगीं नशा सुबह तक आँखों में है!
हो भी क्यूँ ना, मेरा साकी एक बस लाखों में हैं !!
अब ना करना रिहा कभी इस दिल-ए-मुजरिम को तू,
कर दिया जो बंद दार-ए-ज़ुल्फ़ की सलाखों में है !
नहीं मिठास कहीं ऐसी जैसी तेरे लबों में है,
यूँ तो दुनिया कहती ही है, मिश्री में है, दाखों में है !
अगर मिलती रहे हुस्न से इश्क को माकूल हवा,
फिर ज़माना भी देखे क्या परवाज़ इश्क के पाँखों में है !
'मर ही जायेंगे हम' अब ना छोड़ना हमें दिलबर.
सदा ये गूँजती "कमल" के कान के सुराखों में है !
(दार-ए-ज़ुल्फ़=जुल्फों की जेल, दाख=अंगूर, माकूल=अनुकूल, पांख=पंख)
आँखें उदास और चेहरा उतरा उतरा सा है !
आज मेरा महबूब कुछ उखड़ा उखड़ा सा है !!
हँसी, ख़ुशी, चैन , आराम, सुकून,
दिल का सामान सब बिखरा बिखरा सा है !
जिस मुक़द्दर पे नाज़ करता था मैं,
ये भी क्यूँ आज बिगड़ा बिगड़ा सा है !
जो लगाया था प्यार का गुलशन मैंने,
ना कहे कोई कि उजड़ा उजड़ा सा है !
तेरा दिमाग तो :कमल" सबसे आगे था,
आज फिर क्यूँ? ये पिछड़ा पिछड़ा सा है !
दिल है तो लुटा बैठो किसी शोख हसीं पर !
किसी शोला बदन पर किसी माहेजबीं पर !!
आये हो जब जहान में कुछ करके जाओ तुम,
ये ज़िन्दगी जवानी ये ना यूँ गंवाओ तुम,
जन्नत मिले या ना मिले लो ऐश यहीं पर.......१
क्यूँ झूमे भंवरा फूल पर सोचो दिमाग से,
परवाना लिपटता है क्यूँ नूर-ए-चिराग से,
क्यूँ चाहे चाँद को भला चकोर ज़मीं पर..........२
कल क्या पता ये जोश-ए-जवानी हो ना हो,
रगों में गर्म खून की रवानी हो ना हो,
लुटजा किसी की 'हाँ' पर "कमल" मिटजा 'नहीं' पर....३
सफ़र में चल तो पड़े हैं ले के नाम-ए-मोहब्बत !
ना वो जाने, ना मैं जानूँ, क्या होगा अंजाम-ए-मोहब्बत !!
मुझसा भी खुशनसीब क्या कोई है जहान में,
जिसको उठते ही सवेरे मिलता हो सलाम-ए-मोहब्बत !
जुदा गर हो गये दोनों तो ज़िंदा रह ना पाऊँगा,
यही आता है रह रह के दिल से पैगाम-ए-मोहब्बत !
जहाँ के जितने भी गम है भुला डाले हैं मस्ती में,
पिया है इस क़दर मैंने कुछ जाम-ए-मोहब्बत !
अभी तो सफ़र-ए-उल्फत में है ये पहला क़दम मेरा,
"कमल" बस देखता जा आगे क्या है मक़ाम-ए-मोहब्बत !
अपनी उल्फत को जहाँ में बदनाम ना होने दूँगा मैं !
जो बातें खास है दिल की उनको आम ना होने दूँगा मैं !!
बड़ी मुद्दत में मिला है खुदा से प्यार का तोहफा,
इस तोहफा-ए-मोहब्बत को इलज़ाम ना होने दूँगा मैं !
नहीं टूटेगा ये ऐतबार अब किसी भी कीमत पर,
बस सवेरा खुशियों का गम की शाम ना होने दूँगा मैं !
उसके नाज़ उठाऊँगा नहीं शिकवा करूंगा मैं,
अपने खामोश प्यार को एक कोहराम ना होने दूँगा मैं !
है एक ख्वाहिश यही दिल की रहे वो आबाद हमेशा,
"कमल" पाकीज़ा हसरत को यूँ दशनाम ना होने दूँगा मैं !
(दशनाम=गाली)

अंगड़ाई....

लेना वो उसका अंगड़ाई उठाकर गोरे वो बाजू !
नहीं रहता, नहीं रहता, मुझे फिर दिल पे कुछ काबू !!
जिधर देखो उधर ही बस उसके ही जलवे हैं,
गया चारों तरफ है छा उसके प्यार का जादू !
तकाज़ा है जवानी का और दिल की भी ख्वाहिश है,
ज़रा जुल्फों को लहराती मेरी जाँ अब तो आ जा तू !
आज नहीं कल ये ईमान जाना है हाथों से,
"कमल" आखिर नहीं है कोई दरवेश या साधू !

...जब तलक नहीं

चैन आता मेरे नादाँ दिल को जब तलक नहीं !
दिखे ना जब तक मेरे यार की इक झलक नहीं !!
ख़ुशी है, गम है, क्या है कुछ पता नहीं चलता,
आँख का पैमाना जाता जब तक छलक नहीं !
फिर भी उम्मीद पर ही ये दुनिया कायम है,
माना बाँहों में आ सकता है ये फलक नहीं !
मिले दो दिल और बस उनको मिलने ही दे,
इतना मासूम और सीधा तो ये खलक नहीं !
पढ़ के, सुन के, "कमल" के दर्द की ग़ज़लें,
हाय क्यूँ रुंधता तुम लोगों का हलक नहीं !
(पैमाना=जाम, फलक-आकाश, खलक=संसार, हलक-गला)
मेरा दिल तेरी जुल्फों के पेंचों में अटक गया !
कि जैसे शहर की शब में कोई राही भटक गया !
तुझे पा भी नहीं सकता तुझे खो भी नहीं सकता,
मुक़द्दर मेरा ये मुझको कहाँ लाके पटक गया !
कहाँ पहरों किये बातें, कहाँ अब साथ लम्हों का.
ये मेरा प्यार भी शायद ज़माने को खटक गया !
देख कर हाल को मेरे अब सब दोस्त कहते हैं,
हुआ ये क्या तुझे तू तो बिलकुल झटक गया !
मोहब्बत में "कमल" इस दिल की हालत यूँ भी होती है,
गिरा जो आसमान से तो खजूर पर जा लटक गया !

मोहब्बत में...

वैसे तो मोहब्बत में नहीं कोई बुराई है !
हाँ, एक चीज़ बुरी, और वो तन्हाई है !!
छुप छुप के याद करना होता दिलबर को,
नाम जो खुल गया तो बस रुसवाई है !
रो के पूछेगी दुनिया तुझसे हाल तेरा,
हँस के उड़ाएगी ये दुनिया तमाशाई है !
फिर भी यादों का सहारा है उल्फत में बहुत,
मानता हूँ कि काम आती नहीं परछाई है !
उधर हो तन्हा तुम और इधर "कमल" तन्हा,
अब तो मिलजा, मेरी जान पे बन आई है !
कहता है दिल मचल मचल....आज शाम ढले !
उसी हसीं के पास चल...........आज शाम ढले !!
बेचैन हो रहा है क्यूँ ? बेताब ज्यादा है,
मुझको को पता है जो भी तेरा इरादा है,
ऐ दिल ज़रा संभल संभल...आज शाम ढले ....१
है जान -ए-जिंदगानी वो, है जान-ए- शायरी ,
उसको ही सोचकर ये कलम मेरी चल पड़ी
लो बन गयी नयी ग़ज़ल...आज शाम ढले ....... २
सीने से लग के वो मेरे कुछ गुनगुनायेगी,
मेरी सुनेंगे पहले वो फिर अपनी सुनाएगी,
फिर वो पुकारेगी "कमल"....आज शाम ढले.......३
मेरे दिलबर ! मेरे हमदम ! मेरी आवाज़ तो सुन !
आके पहलू में ज़रा मेरे दिल का साज़ तो सुन ...!!
क्यों ना आशिक मैं बनूँ तुझसा हसीं कौन यहाँ,
तेरे दम से ही है ये हुस्न की दुनिया जवाँ,
कौन समझेगा सिवा तेरे मेरा दर्द-ए-निहाँ,
इश्क की दास्ताँ का जो है फिर आगाज़ तो सुन....१
मुझको दीवाना बनाते हैं गाल दहके हुए,
हाय ये आँख की मस्ती, ये गेसू महके हुए,
हूँ मैं मदहोश मेरे पड़ते क़दम बहके हुए,
मरीज़-ए-इश्क है "कमल" ओ मेरे चारासाज़ तो सुन....२
(दर्द-ए-निहाँ=छुपा दर्द, आगाज़=शुरुआत, गेसू=ज़ुल्फ़, चारासाज़=वैद्य)

निभाऊँगा...

निभाऊँगा रस्म-ए-उल्फत जहाँ तक मेरे बस में है !
मज़ा ऐसा कहाँ है और जैसा उसकी बातों के रस में है !!
ख्याल-ए-जुदाई जब कभी इस दिल में आता है,
लरज़ जाता हूँ मैं और कौंधती बिजली नस में है !
तमन्ना है यही अब तो कि वो हो और बस मैं हूँ ,
मगर ये ज़िन्दगी यारो वक़्त के क़फ़स में है !
रोज़ हो जाता है छलनी मेरा दिल उसके तीरों से,
वल्लाह ! कितने तीर उस शोख के तरकस में है !
अटकी हुई है दुनिया "कमल" एक बात पर,
किस किस को बताऊँ? क्या फर्क प्यार और हवस में है !
(कफस=पिंजरा)
अपने किये पे आज ये पछतावा क्यूँ है ?
हाये ये वक़्त इतना बड़ा छलावा क्यूँ है?
मेरे ख्याल से कसूर सब माहौल का है,
आखिर दिल को इतना देता बढ़ावा क्यूँ है?
दिल में कुछ और जुबां पे कुछ और होता है,
प्यार में भी इस क़दर दिखावा क्यूँ है?
"कमल" ज़रा संभालो दिमाग को तुम,
और कोई बात मोहब्बत के अलावा क्यूँ है?
नींदें हराम हुई और जीना दुश्वार हुआ !
हाय किस मोड़ पे आके मुझे प्यार हुआ !!
बड़ा गुरूर था अपने ज़ब्त का, लेकिन,
दिमाग भी दिल के आगे शर्मसार हुआ !
क्या दिन क्या रात क्या सुबह क्या शाम.
उसकी ही दीद का मैं तो तलबगार हुआ !
कहते है मोहब्बत में है इम्तिहाँ बहुत,
हर इम्तिहाँ के लिए मेरा दिल तैयार हुआ !
याद रख इसी दिल ने फंसाया था "कमल".
भले ही आज ये तेरा गमगुसार हुआ !
(ज़ब्त=संयम, दीद=दर्शन, तलबगार=इच्छुक, गमगुसार=हितैषी )
किसी की सोती उमंगों को जगाना है मुझे !
लगी में और भी आतिश लगाना है मुझे !!
झनझना दे जो किसी शोख के दिल के तार सभी,
आज से ऐसे ही नग्मों को गाना है मुझे !
दुनिया ग़मगीन है, कहते हैं रोज़ वो हमसे,
ज़ेहन से ऐसे ख्यालात भगाना है मुझे !
रंग- ए-उल्फत से लबालब है मेरे दिल का खुम,
उसको भी अपने ही रंग में रंगाना है मुझे !
लोग कहते हैं, दिल को ठगती हैं आँखें,
शरीफ दिल को "कमल" फिर भी ठगाना है मुझे !
(आतिश=आग, ज़ेहन=दिमाग, खुम=घड़ा)
पहले तो खूब दौर चले सवाल-ओ-जवाब के !
फिर खुलने लगे पन्ने दिल की किताब के !!
वो भी हैं बेक़रार से और हम भी बेक़रार,
ना जाने क्या है जी में शब-ए-माहताब के !
कभी आँखों से पिलाओ कभी होंटों से पिलाओ,
मत रोको, अब लगाके, ये चस्के शराब के !
होश-ओ-हवास उड़ गए, नशा सा छा गया,
थे तरह तरह के जलवे पीछे हिजाब के !
बातों ही बातों में "कमल" क्या क्या पूछ डाला,
ज़रा हौसले तो देखो इस दिल जनाब के !
(शब-ए-माह्ताब=चांदनी रात, हिजाब=पर्दा)
दिल-ओ दिमाग पे छाया, वो एहसास है तू !
कहने को दूर है मगर बहुत पास है तू ........!!
तेरी हस्ती को दुनिया वाले कुछ भी समझे,
मुझसे पूछे तो बताऊँ कितनी ख़ास है तू !
ग़मों से झुलसती ज़िन्दगी के सहरा में,
एक उम्मीद सी, पानी की आस है तू !
"कमल" तेरा है और सिर्फ तेरा है,
क्या सोच कर फिर इतनी उदास है तू !
थप्पड़ जब किसी मनचले पे पड़ गया होगा !
प्यार का भूत उसी वक़्त उतर गया होगा !!
मेरे ख्याल से चप्पल भी लगी होगी उसे,
पिटते पिटते हाय दम भी उखड गया होगा !
लात और मुक्के बजाये होंगे राहगीरों ने,
खिलने से पहले, उसका गुलशन उजड़ गया होगा !
जिन हाथों को नाज़ुक कहते थे दीवाने.
उन्हीं हाथों से अब बिच्छू सा लड़ गया होगा !
"कमल" सलामत रहे हम और हमारी लैला,
हमें क्या मतलब, किसका क्या बिगड़ गया होगा !
प्यार के रंगों से रंगी रंगोली मुबारक हो !
मेरे हबीबो, मेरे दोस्त तुम्हें होली मुबारक हो!!
यही तो दिन है एक हंसी और मजाक करने का,
मगर बुरी न लगे ऐसी ठिठोली मुबारक हो!
मौसम सर्द भी है, गर्म भी है, वाह क्या कहने,
और ऐसे में उठती उमंगो की डोली मुबारक हो !
इधर रंगों में डूबा है किसी दिलफेंक का कुर्ता,
उधर भी भीगती किसी शोख की चोली मुबारक हो !
हमेशा खुश रहो, फूलो फलो और मुस्कुराओ तुम,
"कमल" के दिल से निकली प्यार की बोली मुबारक हो!
मुझे बेवफा बेमुरव्वत न कहो..ऐसे लफ़्ज़ों से मुझको नफरत है !
क्या क्या नाम दे डाले मेरी मजबूरियों को,
बहुत फासला बना डाला ज़रा सी दूरियों को,
जुदाई से ही तो मेरी जाँ निखरता रंग-ए-उल्फत है ...१
रोंद कर दिल को मेरे इस तरह ना जा ,
दिल के आशियाँ के सिवा किसी जगह ना जा
कहती आयी है दुनिया कि दिल से दिल को राहत है......२
तू ही है ज़िन्दगी मेरी अय जान-ए-ग़ज़ल,
तुझको खोकर कहीं का ना रहेगा "कमल"
मुझे तब भी मोहब्बत थी मुझे अब भी मोहब्बत है.....३
समझ में ये नहीं आता कि क्या तोहफा-ए-ईद दूँ !
ये दिल तो दे चुका दिलबर तो दिल का क्या मजीद दूँ !!
साल का जश्न है जानम मनायें खुशिया जी भर के,
इजाफा तुम करो हमदम ख़ुशी क़ी मैं तम्हीद दूँ !
भले मैं कितना मुफलिस हूँ मगर दिल का अमीर हूँ,
अगर तेरा इशारा हो तो मैं दुनिया खरीद दूँ !
जुबां से बोल दे कुछ तो कि क्या तेरी ख्वाहिश है,
सोचता हूँ तोहफा मुताबिक तेरी उम्मीद दूँ !
"कमल" चलिए ईद को कुछ यूँ मनाते हैं,
दीद तुम दो मुझे अपनी तुम्हें मैं अपनी दीद दूँ !
(मजीद=पुनः, इजाफा=वृद्धि, तम्हीद=भूमिका, मुफलिस=निर्धन, मुताबिक=अनुसार, दीद=दर्शन )
अपनी बरबादी के अब आसार नज़र आने लगे !
दिल भी और दिमाग भी बीमार नज़र आने लगे !
एक दम से कैसी करवट हाये बदली वक़्त ने,
दुनिया के गुलशन के गुल, ख़ार नज़र आने लगे !
जो किया करते थे दावा साथ में ही रहने का,
वो मेरे साये से बचते यार नज़र आने लगे !
वो गलत ना मैं गलत हूँ खेल है तकदीर का,
दोनों ही किस्मत के हाथों लाचार नज़र आने लगे !
कहाँ गए "कमल" तेरे, चैन वो करार वो,
ज़िन्दगी के बाकी दिन बेकार नज़र आने लगे !
जिस दिन मेरे यार की ना खबर आती !
दिल की दुनिया लुटती हुई नज़र आती !!
ज़ेहन में घूमता रहता है तसव्वुर तेरा,
याद रह रह के फिर रहगुज़र आती !
बहुत समझाता हूँ यूँ तो अपने दिल को,
तसल्ली इसको तो नहीं मगर आती !
यूँ तो तस्वीर भी है तेरी मेरे पास,
नहीं वो बात, जो तुझको देख कर आती !
किया है इश्क तो गम भी झेल "कमल".
रात के बाद ही तो है सहर आती !
हो गया मजबूर मैं तो सामने हालात के !
टुकड़े होते देखे मैंने, अपने ही जज़्बात के !!
कुछ ना आता है समझ में हाये ये क्या हो गया,
अब मुझे अंगारे लगते चाँद-तारे रात के !
जो मेरी परेशानियाँ है हल तो होगा कुछ कहीं,
कहाँ गये समझाने वाले साथी मेरे साथ के !
बातें तेरी याद आती है मुझे तन्हाई में ,
बात अब तब ही बनेगी, दौर आये बात के !
एक पल कटता नहीं उसके तसव्वुर के बगैर,
अब "कमल" कैसे कटेंगे रात-दिन हयात के !
आदमी जब कहता है कि 'कोई बात नहीं',
दरअसल तब ही कोई बात हुआ करती है !
वस्ल की रात को ही उनकी इनायत ना समझ,
शब-ए-फुरकत भी उन्हीं क़ी सौगात हुआ करती है !
दिन है वो जो गुज़रता है दोस्तों के बीच,
रात है वो जो किसी हसीं के साथ हुआ करती है !
सुख और दुःख तो एक सिक्के के दो पहलू है,
कभी धूप तो कभी बरसात हुआ करती है !
क्यूँ परेशां हो "कमल" जो वो तेरे पास नहीं,
जुदाई ही एक अंजाम-ए-मुलाकात हुआ करती है !
(वस्ल=मिलन, इनायत=कृपा, शब-ए-फुरकत=विरह क़ी रात )
मेरा महबूब आज कुछ परेशाँ नज़र आया !
ये कैसी उलझनों में आज मेरा हमसफ़र आया !!
तेरी बातों से जाहिर है कि क्या दर्द-ए-निहाँ तेरा,
और मैं कितना बेबस हूँ गुस्सा अपने पर आया !
ये दुनिया क्यूँ सताती है हमेशा अच्छे लोगों को,
एक ये ख्याल मुझको आज रह रह कर आया !
छुपाता कैसे वो मुझसे आखिर हमराज़ हूँ उसका,
मगर हूँ सोचता गर्दिश-ए-अय्याम किस क़दर आया !
मेरे दिल की ये हसरत है "कमल" वो खुश रहे हरदम,
जो गम उधर है हावी वो क्यूँ ना इधर आया !
(दर्द-ए-निहाँ=छुपा दर्द, गर्दिश-ए-अय्याम =समय-चक्र )
अब तलक भी कितने ही घर गर्क हैं, बरबाद है !
कहने को कहते रहो आज़ाद है ! आज़ाद है !!
करते बच्चे नौकरी जबकि उमर है पढने की,
दब गए हैं बोझ से जबकि उमर है बढ़ने की,
हाये ये मजबूर बच्चे अनसुनी फ़रियाद है ..१
औरतों की जिंदगानी चकलों में है, बाज़ार में,
किसने ये तेजाब फेंका मेरे हसीं गुलज़ार में,
कौन सुनता औरतों की होती जो रूदाद है ..२
कितनी ही चंगेज़-औ- नादिर ने उजाड़ी बस्तियां,
कितनी ही खातिर वतन की मिट गयी

हैं हस्तियाँ,
कोई ज़रा मुझको बताओ किसके कितना याद है..३
हो गए आज़ाद लेकिन क़ैद में इंग्लिश के है,
और कहते नाज़ से मालिक अपनी ख्वाहिश के है,
अपनी ज़ुबां, अपना वतन, अपना जहाँ आबाद है..४
आज भी कश्मीर की जनता है दहशत से भरी,
कर रही है ज़ुल्म उन पर नज़रें वहशत से भरी,
कौन कहता है कि हिन्दोस्तानी बिलकुल शाद है.....५
खैर छोडो जाने दो ये बातें है अपनी जगह,
तुम सभी को हो मुबारक आज़ादी क़ी साल गिरह,
जश्न के मौके पे ना होते "कमल" नाशाद है.......६

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

ये तेरी महकी हुई जुल्फें जो ज़रा खुल जाये !
फिजाओं में, हवाओं में इतर सा घुल जाये !!
अपनी जुल्फों से, झटक दे पानी, मेरे दिल पर,
क़सम से, दिल पे दाग जितने हैं धुल जाये !
हटा दे जुल्फों को, दिखलादे गुलाब सा चेहरा,
कौन कमबख्त फिर चमन में देखने गुल जाये !
तेरी जुल्फों के साये में गुजरेगी अपनी हयात,
दोनों दिल थोड़े दिन आपस में मिलजुल जाये !
इरादा है "कमल" का ये, तेरी जुल्फें चूमूँ ,
फिक्र कोई नहीं, ये जान चाहे, बिलकुल जाये !
ये दिल बेताब है तुम्हें छूने के लिए,
अमानत गैर की हो, दिमाग कहता है !
मुझे बुझा दो और कह दो दिल की उनसे,
ना सोचो ज्यादा कुछ, ये चिराग कहता है !
तुम्हें आजादी है पूरी मेरे निजाम में,
गुलों से, बुलबुलों से अब बाग़ कहता है !
बेक़रार मिलने को तुम भी कम नहीं,
मेरे जो दिल को मिला वो सुराग कहता है !
कभी सोचा है कुछ तुमने मेरे लिए "कमल"
तन्हाई का है दिल पर वो दाग कहता है !
बाद मुद्दत के आज उनका दीदार हुआ !
ज़हेनसीब ! जो इनायत-ए-यार हुआ !!
ज़माना खुश था बड़ा हमें जुदा करके,
आज ज़माना भी देखो शर्मसार हुआ !
ना भूल पाऊँगा कभी मैं उसके जलवे,
दिल सदके उसके ज़ुल्फ़-औ-रुखसार हुआ !
इन्तिज़ार ने तो मुझे रह रह के रुलाया था,
मगर अच्छा आज अंजाम-ए इन्तिज़ार हुआ !!
था कशमकश में कि गलत हुआ या ठीक,
"कमल" गलत ना हुआ जो उनसे प्यार हुआ !
कितना अच्छा होता अगर होते साथ तुम भी !
दिल का साज़ भी छिड़ता और तरन्नुम भी !!
मेरे तसव्वुर में है तेरा गुलाब सा चेहरा,
जादू से कम नहीं है तेरा मीठा तबस्सुम भी !!
तशनालबी है कितनी तुझको भी पता चलता,
एक बार ले के आओ ज़रा सागर-औ-खुम भी !!
जुदाई की आग ज्यादा है दोज़ख की आग से,
क्या ख़ाक जलाएगा मुझे अब तो जहन्नुम भी !!
ज़हेनसीब ही निकलेगा अब तो रोज़-ए-हश्र,
हो जाये "कमल" इश्क में चाहे गर्क-औ-ग़ुम भी !!
(साज़=वाद्य-यन्त्र, तरन्नुम=संगीत, तबस्सुम=मुस्कुराहट, तशनालबी=प्यास, सागर-औ-खुम=शराब के बर्तनों के नाम है, दोज़ख=नरक, जहन्नुम= नरक, ज़हेनसीब=अहोभाग्य, रोज़-ए-हश्र=मृत्यु के उपरांत निर्णायक दिन, गर्क-औ-ग़ुम=नष्ट और लुप्त )
मेरा ह्रदय कमंडल रिक्त पड़ा तू प्रेम की भिक्षा दे दे मुझे !
है प्रेम धर्म, है प्रेम कर्म, कुछ ऐसी शिक्षा दे दे मुझे !!
प्रवेश-पत्र दे मेरा बना, जिस योग्य हूँ, कक्षा दे दे मुझे !
शरणागत और समर्पित हूँ, ह्रदय की सुरक्षा दे दे मुझे !!
आसीन हूँ तेरे चरणों में अब चक्षु-दीक्षा दे दे मुझे !
आतुर हूँ परीक्षा देने को , कह दो कि परीक्षा दे दे मुझे !!
कोई प्रेम में त्रुटि हो मेरे तो अपनी समीक्षा दे दे मुझे !
प्रतीक्षा "कमल" आवश्यक है तो तेरी प्रतीक्षा दे दे मुझे !!
बधाई हो 'मित्रता-दिवस' की जितने भी मेरे मित्र हैं !
जितने भी नाते हैं जगत के सब में ये पवित्र है !!
मिल गए हैं कैसे हम सब बात ये विचित्र है !
मन में भी, मष्तिष्क में भी मित्रों के ही चित्र है !!

बंध गए हम कैसे देखो मित्रता की डोर से !
हम बंधे इस छोर से तो तुम बंधे उस छोर से !!
ना निकल पायें कोई भी अब ह्रदय के ठौर से !
हो बधाई 'मित्रता-दिवस' की सबको "कमल" की ओर से !!

***भाषा की तकरार***

मुसलमानों का उर्दू पे हक हो, हिन्दू का हिंदी पे अधिकार हो !
मुझको तो नामंज़ूर है, तुम भले ही तैयार हो !!
शब्दों का ही तो अंतर है, कविता में और अश,आर में !
शायरों के जज़्बात में और कवियों के उदगार में !
कवियों की हो काव्य शैली या शायरों का अंदाज़-ए-बयां !
दोनों में ही है झलकता, उनका अपना दर्द-ए-निहां !
आओ ! दिल की बात लिख लो, हिंदी लिखो उर्दू लिखो !
मतलब तो आसमाँ से है, गगन लिखो गर्दू लिखो !!
आलम-ए-हिज्र है फिर वक़्त गुज़ारूँ कैसे ?
बार-ए-फुरक़त को मैं सर से उतारूँ कैसे?
मौक़ा मिला ही नहीं तेरी ज़ुल्फ़ सँवारने का,
बगैर खू फिर ज़िन्दगी संवारूँ कैसे?
डरता हूँ कहीं तेरा नाम ना सुन ले ज़माना,
अब तू ही बता तुझको पुकारूँ कैसे?
दिल तो खो गया तेरी याद के समंदर में,
डूबते दिल को अब गम से उभारूँ कैसे?
मार ही डाला मुझको तेरी जुदाई ने,
"कमल" कोई कहो इस गम को मारूँ कैसे?
(आलम-ए-हिज्र=विरह का समय, बार-ए-फुरक़त=विरह का भार, खू=अभ्यास )
छाँव जुल्फों की, ज़रा देर, हमनवा दे दे !
थका हारा हूँ, अपने दामन की हवा दे दे !!
तुझको मालूम है कि मेरा इलाज है क्या,
देर ना कर, इस बीमार को, दवा दे दे !
दम सा घुटता है मेरा, जाता हूँ जहाँ,
दिल को अच्छी सी, आबोहवा दे दे !
मैंने चाहा है, सज़ा जो भी दे ख़ता की इस,
कोई शिकवा नहीं, जो तुझको हो रवा दे दे !
कितने गम दे दिए , "कमल" के दिल को,
दिल है एक, कम, मुझको तो सवा दे दे !
(आबोहवा=जलवायु, रवा=स्वीकार्य )
शाम की तन्हाई में, दिल बुझा बुझा सा है !
गम की दौलत क्या मिली, सब लुटा लुटा सा है !!
हूँ परेशां मैं बहुत, क्यूँ ना आये आज वो,
साँसें हैं अटकी हुई, दम घुटा घुटा सा है !
चलते चलते साथ में, हम निकल आये थे दूर,
वक़्त का पहिया भी ये, अब रुका रुका सा है !
पास में वो तो नहीं, है तसव्वुर उसका सिर्फ,
फिर भी उसके क़दमों में, सर झुका झुका सा है !
सब्र कितना मैं करूँ, कोई बतलाओ "कमल",
अब ये दामन सब्र का, हाँ छुटा छुटा सा है !
मेरी शायरी का कोई कदरदान क्यूँ नहीं ?
कोई 'वाह' कहने वाला मेहरबान क्यूँ नहीं?
जज़्बात में कमी है या कोई और बात है,
मुझे इन्तिखाब-ए-लफ्ज़ की पहचान क्यूँ नहीं?
भूखा हो सिर्फ जो तेरे शेर-ओ-सुखन का,
ऐसा कोई जहाँ में मेहमान क्यूँ नहीं?
वो हमसफ़र है मेरा, हमराज़ भी तो है,
होते हुए वो सब कुछ हमज़बान क्यूँ नहीं?
कोई नहीं सराहता तुझे "कमल" की कलम,
अपने लिखे पे फिर तू पशेमान क्यूँ नहीं?
(इन्तिखाब-ए-लफ्ज़=शब्द का चयन, सुखन=काव्य,हमज़बाँ=सह भाषी,पशेमान=लज्जित )
उसका प्यार तो "कमल" बड़ा अनोखा निकला !
ना हल्दी ना फिटकरी और रंग चोखा निकला !!
तारीफ क्या करूँ मैं उसके दिल की अब,
मेरे दिल को, बैठने को, प्यारा झरोखा निकला !
ग़जब की मस्ती है उसकी गुलाबी आँखों में,
हर पीने वाले को जाम का धोखा निकला !
सोचता था मालिक हूँ अपने नसीब का मैं,
पास उसके, मेरे मुक़द्दर का लेखा -जोखा निकला !
उधर वो नज़रों के तीर, इधर था मासूम सा दिल,
उफ़ ना की दिल ने मेरे, तीरों को खा निकला !
नज़रें तो मिल ही चुकी आ दिल को मिला लें हम !
उल्फत के गुलशन में अब फूल खिला लें हम !!
ये होंट तेरे नाज़ुक भरपूर है मस्ती से,
होंटों की शराबों को, होंटो को पिला लें हम !
लूटे ना कहीं दुनिया, ये महल मोहब्बत का,
जिस्मों की सरहद पर, बाँहों का किला लें हम !
हाथों में थाम के हाथ, कहीं दूर निकल जायें,
चल, दिल को मोहब्बत का, ऐतबार दिला लें हम !
जब प्यार किया हमदम, करते ही रहेंगे "कमल",
अब अपने होंटों पर, ना कोई गिला लें हम !
नग्मों को जिस पे नाज़ था ..वो शख्स रफ़ी था !
जो रखता एक अंदाज़ था......वो शख्स रफ़ी था!!
जो बादशाह -ए-आवाज़ था....वो शख्स रफ़ी था !
किया मौसिकी पे परवाज़ था..वो शख्स रफ़ी था !!
एक नए दौर का आगाज़ था.....वो शख्स रफ़ी था!
आवाज़ में छुपा एक साज़ था..वो शख्स रफ़ी था!!
दिलो पे जिसका राज था...........वो शख्स रफ़ी था!
गुलूकारी का जो सरताज था......वो शख्स रफ़ी था!!
बड़ा नेकदिल खुशमिज़ाज था.....वो शख्स रफ़ी था!
जो कह गया अलविदा आज था...वो शख्स रफ़ी था!!
(रफ़ी साहब ! आप हमारे दिलों में हैं ! हम आपको नहीं भूल पायेंगे !)
मेरी ग़ज़लें सभी तुझ से ही बाबस्ता है !
गुल है मेरे शेर, ग़ज़ल गुलदस्ता है !
मोड़ कितने सही, मगर ख़ुशी ये है,
जाता घर को तेरे, मेरे घर से रस्ता है !
चाहता है जो तुझे, ख्याल कर उसका
देख आकर, तेरे आशिक़ का हाल खस्ता है !
लोग समझाते मुझे, ज़रा सब्र तो कर,
रंग लाता है ये प्यार, मगर आहिस्ता है !
मुफ्त में दे दिया "कमल" ने दिल को,
चलो ये फिक्र हटा, गया महँगा या सस्ता है !
(बाबस्ता=सम्बंधित)
दिल नहीं शाद तो नाशाद सही !
तू नहीं पास तो तेरी याद सही !!
नाम क्या दूँ मैं अपनी चाहत को,
अनसुनी एक फ़रियाद सही !
मिलने ना देगा हम दोनों को,
वक़्त जल्लाद है, जल्लाद सही !
ये जहाँ कब हुआ किसी का है,
मेरी रूदाद पे भी बेदाद सही !
किस को साथी कहूँ अपना "कमल",
मेरा साथी मेरा हमज़ाद सही !
(शाद=खुश, नाशाद=दुखी, फ़रियाद=प्रार्थना, रूदाद=कथा, बेदाद=अत्याचार, हमजाद=अपनी छाया)
शक किया आज उसने वादे पर !
डाल दी धूल मेरे इरादे पर !!
आधा रस्ता तो कर लिया है तय,
यकीं नहीं क्यूँ बाकी आधे पर ?
सिर्फ कहते हो, करते कुछ भी नहीं,
आया इल्ज़ाम ये सीधे साधे पर !
तेरे ही पास मेरा दिल है दिलबर,
कुछ भी लिख दिल के वर्क सादे पर !
इश्क है बाज़ी "कमल" शतरंज की,
गौर रख अपने दिल पयादे पर !
(वर्क=पृष्ठ, सादा=कोरा )
लोग क्यूँ कहते हैं कि हुस्न कुछ नहीं काफिर के सिवा !
मेरे ख्याल से दुनिया भी कुछ नहीं गैब-औ-ज़ाहिर के सिवा !!
किसी की नज़रों में मुहब्बत खुदा से बढ़कर है,
किसी की नज़रों में इश्क कुछ नहीं ताजिर के सिवा !
ये इक फैसला हुआ काफी ज़िद्दोज़हद के बाद,
आदमी कुछ नहीं है तरतीब-ए-अनासिर के सिवा !
हमसे पहले भी था, अब भी है, आगे भी रहेगा ,
कौन है जाविदाँ खुदा-ए-हाज़िर-औ -नाजिर के सिवा !
ना दुखाओ दिल तुम कभी भी किसी

का भी,
मालिक यहाँ भी रहता है मस्जिद-औ-मंदिर के सिवा !
सामान जहाँ के खुश नहीं कर सकते "कमल",
कौन दे सकता मसर्रत तुमको खातिर के सिवा !
(काफिर=पापी, गैब-औ-ज़ाहिर=अप्रत्यक्ष -प्रत्यक्ष, ताजिर-व्यापार, तरतीब-ए-अनासिर=तत्वों का क्रम!कहते हैं मनुष्य का शरीर पांच तत्वों का बना है !पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु !..छिति जल पावक गगन समीरा *पञ्च रचित यह अधम शरीरा*!, जाविदाँ=स्थायी, हाज़िर-औ-नाजिर=सर्व व्यापक, मसर्रत=प्रसन्नता, खातिर=मन )
**********विरह-वेदना************
क्यों इस मौसम में दूर हो तुम, बस इतना मुझको बतला दो !
ये अच्छी बात नहीं साजन ! सजनी को अपनी तरसा दो !!
यौवन की तपती भूमि पर तुम प्रेम सुधा रस बरसा दो !
इस मादक साँझ की बेला में तुम तन मन मेरा हरषा दो !!

ये प्रीत की चादर ओ प्रीतम बन निर्मोही कलुषित ना कर !
जब प्रण किया संग रहने का फिर प्रण को परिवर्तित ना कर !
व्यथित है मन, तुम पास नहीं, आ जाओ मेरे सपनो के कुँवर !
है बसंत ऋतु, कैसे मैं रखूँ? अंकुश अपने इस यौवन पर !!
अय मेरे दिल सब्र कर ले, इतना मत मायूस हो !
होता है अंजाम बेहतर, प्यार में जब ख़ुलूस हो !!
आके मेरे पास तुम फिर ना जाना जानेमन,
ऐसा ना हो ज़िन्दगी में तेरी कमी महसूस हो !
शमा-ए-उल्फत कभी बुझने ना देंगे उम्र भर,
और बुझेगी क्यूँ भला दिल के जब फानूस हो !
दिन में तेरा कुर्ब हो रातों को वस्ल हो तेरा,
है मज़ा जीने का तब, रात दिन मख्सूस हो !
अपनी मर्जी से उठेंगे शब-ए-विसाल में "कमल",
हो मुअज्जिन की अजां या नाला-ए-नाकूस हो !
(ख़ुलूस=सच्चाई, कुर्ब=क़रीबीपन, फानूस=लालटेन, वस्ल=मिलन, मख्सूस=विशेष, शब-ए-विसाल=मिलन की रात, मुअज्जिन=अजान देने वाला, नाला-ए-नाकूस=शंख-ध्वनि ! आज कल तो खैर अलार्म है नहीं तो पहले लोग मस्जिद में होने वाली अजान या मंदिर में बजने वाले शंख से सवेरे के वक़्त उठते थे )
दोस्त वो ही दोस्त, जो दुःख-दर्द में शरीक है!
दूर चाहे कितने हो, दिल के पर नज़दीक है !!
दोस्त वो जो आइना हो तेरे सभी ही काम का,
गलत को बोले गलत, ठीक को कहे ठीक है !
दोस्तों ! किस्मत से ही मिलते है अच्छे दोस्त भी,
उनकी किस्मत खोटी है, जिनका ना कोई रफीक है !
दिल में जिनके जलता हो दोस्ती का ही चिराग.
रहता नहीं ज़िन्दगी में उनकी, गम का कोई तारीक है
बनने को दोस्त बन जाते है, एक पल में "कमल",
पर निभाना दोस्ती को, काम ज़रा बारीक है !
(शरीक=सम्मिलित, आइना=दर्पण, रफीक=मित्र, तारीक=अँधेरा )
कमल ! कैसी ये दुनिया है ?
किसी की रंगीं है यादें !
किसी की गमगीं है यादें!!
किसी की मौज आती है !
किसी की मौत आती है !!
किसी की ज़िन्दगी...मज़ा !
किसी की ज़िन्दगी ...सजा !!
किसी को रात है प्यारी !
किसी को रात है भारी !!
कमल ! ऐसी ये दुनिया है .....
हाँ, यारों! ये तो अपनी अपनी किस्मत है,
कोई रात भर रोया तो कोई रात भर सोया !
किसी आशिक के दिन-रात जब तन्हा गुज़रते हैं,
तो फिर ऐसा लगता है, ज़िन्दगी बोझ है गोया !
देख शबनम सवेरे को, एक ही ख्याल है आता,
फलक भी मेरी हालत पर रात भर कितना है रोया!
समझाया लोगो ने कितना, मोहब्बत दर्द देती है,
मगर आयी समझ में अब, जब अपना दिल खोया !
"कमल" ये बात भी शायद ठीक है किसी हद तक,
पड़ता काटना वो ही जिसने जो भी है बोया !
(गोया=मानो, शबनम=ओस, फलक=आकाश )
लगता है पूरी ना होगी ख्वाहिश उनके दीद की !
नादाँ दिल क्या चाहा तूने और क्या उम्मीद की !!
एक तो पहले से ही दुश्मन था अपना ये जहाँ,
दूसरे क़िस्मत ने भी मिट्टी मेरी पलीद की !
उसके रुखसारों की हसरत ना करूँ तो क्या करूँ,
छा गयी हो जिन पे सुर्खी सुबह के खुर्शीद की !
हो गया मैं तो परेशां दिल की ज़िद के सामने,
वस्ल-ए-दिलबर की तमन्ना इसने हाँ मज़ीद की !
फ़र्ज़ आखिर आ गया, प्यार के आगे "कमल",
यूँ तो खातिर दीद के हमने बहुत तम्हीद की !
(दीद=दर्शन, रुखसार=गाल, खुर्शीद=सूरज, मज़ीद=पुनः, तम्हीद=भूमिका )
मेरा दिल तो बड़ा ही चोर और आकिल निकला !
पूछा जो मैं, क्या चुराया है? तेरा दिल निकला !!
अय दिल ज़रुरत क्या थी तुझे किसी का दिल चुराने की,
बस गुमसुम सा हो गया, बात का ना हासिल निकला !
कभी कभी तो मेरा दिल उल्टा ही समझाये है मुझको,
भले चाहे बुरा हूँ मैं पर देख प्यार के काबिल निकला !
तेरे निजाम में कुसूर आँखों का सजा दिल को मिली,
अय इश्क कैसा इन्साफ किया, कैसा आदिल निकला !
"कमल" से पूछे ज़रा कोई उसका हुस्न-औ-जमाल,
सिवा आइने के कोई भी तो ना मुकाबिल निकला !
(आकिल=चतुर, निजाम=प्रबंध, आदिल=न्यायकारी, मुकाबिल=प्रतियोगी)
तुम्हारा प्यार मिल जाता.....मेरी दुनिया सँवर जाती !
गुँचा-ए-दिल भी खिल जाता..मेरी दुनिया सँवर जाती !!
मेरे ऊपर तुम्हारा जो निगाह-ए-लुत्फ़ हो जाता,
चाक दामन भी सिल जाता....मेरी दुनिया सँवर जाती !
घडी भर के लिए मिलता सहारा तेरी बाँहों का ,
गम-ए-दुनिया भी झिल जाता..... मेरी दुनिया सँवर जाती !
मेरे वीरान घर में जो सनम एक बार आ जाते,
तेरे सजदे में दिल जाता..........मेरी दुनिया सँवर जाती !
"कमल" देखे ज़माना जो तुझे आगोश में मेरे,
नज़ारा देख हिल जाता............. मेरी दुनिया सँवर जाती !
'चार' नज़रें क्या हुई अब देखो 'चार' के ही कमाल होंगे !
प्यार से मेरे लबालब 'चार' दिन, 'चार' माह, 'चार' साल होंगे !
'चार' लफ्ज़ है यूँ तो इस मुहब्बत में कहने को,
मगर इन 'चार' से ही बाबस्ता सैंकड़ों जंजाल होंगे !
'चार' दीवारी में जिस्म की दिल क़ैद रह नहीं सकता,
निकल भगेगा जब कभी सामने जलवा-ए-जमाल होंगे !
'चार' दिन की ज़िन्दगी है इसे प्यार से जी लो यारों,
बगैर प्यार के तो ज़िन्दगी में फालतू के बबाल हों

गे !
'चार' लोगो के बीच में चर्चा है तेरे इश्क का "कमल",
रोज़-ए-हश्र ना जाने मुझसे भी कैसे कैसे सवाल होंगे !
(लबालब=भरपूर, चार लफ्ज़=चार शब्द! म ह ब त! शायर लोग कहते हैं कि "मुहब्बत" , मुसीबत से 'मु' , हलचल से 'ह', बरबादी से 'ब' और तबाही से 'त' लेकर बना है, बाबस्ता=सम्बंधित, जमाल=सौन्दर्य, रोज़-ए-हश्र=मृत्यु के उपरान्त का दिन जिस दिन निर्णय होता है कि अमुक व्यक्ति को स्वर्ग मिलेगा या नरक )
जाने कहाँ से भनक लग गयी ज़माने को !
बस, आमादा है प्यार मेरा मिटाने को !!
अय बर्क! जा तू रास्ता देख अपना,
ना देख बुरी नज़र से मेरे आशियाने को !
तुम्हें क्या गरज़ पड़ी है दुनिया वालो,
ना बदनाम करो मेरे पाक फ़साने को !
अपने पास ही रख अपना मशवरा रकीब,
थोड़ी बहुत अक़ल तो है मुझ दीवाने को !
"कमल" बाज़ आया मैं तो इस दुनिया से,
कोई ना कोई चाहिए इसे रुलाने को !
(आमादा=तैयार, बर्क=बिजली जो आसमान में चमकती है, गरज़=मतलब, पाक=पवित्र, मशवरा=परामर्श, रकीब=प्रेमिका का दूसरा प्रेमी या प्रेमी की दूसरी प्रेमिका)
इस दिल का ठिकाना क्या कहिये,
अब पास नहीं और पास भी है ....१
आओगे कभी तुम मेरे घर,
हाँ, आस नहीं और आस भी है......२
खेतों की ये अपनी किस्मत है,
कहीं घास नहीं, कहीं घास भी है.....३
ये दुनिया जो करती हैं बातें ,
कभी रास नहीं, कभी रास भी है.......४
तेरी ग़ज़लों के शेर "कमल",
कुछ ख़ास नहीं, कुछ ख़ास भी है.........५
कभी कभी ख़ामोशी की जुबां में बोलना अच्छा होता है !
और कभी अपनी ही धुन में, मस्ती में डोलना अच्छा होता है !!
एक अंदाज़ होना चाहिए आदमी का बात करने का,
बातों बातों के बीच में थोड़ी हँसी घोलना अच्छा होता है !
जिस यार ने छुपायी ना हो कभी तुमसे तुमसे कोई बात,
रूबरू ऐसे दोस्त के अपने भेद खोलना अच्छा होता है !
कोई ज़रूरी तो नहीं कि हर शख्स साफ़ दिल का हो,
भरा है दिल में क्या उसके ये टटोलना अच्छा होता है !
"कमल" लोगो के ईमान यहाँ घटते बढ़ते रहते है,
इसलिए हर बशर को नज़र से तोलना अच्छा होता है !
(बशर=आदमी)
हुआ जाता है दिन-ब-दिन, प्यार का रंग ये गहरा !
रहेंगे मिलके हम दोनों, ज़माना लाख दे पहरा !!
ये हुस्न-औ-इश्क के किस्से रहे रोशन क़यामत तक,
कभी ना इश्क गूँगा हो, कभी ना हुस्न हो बहरा !
मेरी ज़िन्दगी में आये तुम बहारों का जहाँ लेकर,
ये देखो बन गया गुलशन मेरी जिंदगानी का सहरा !
वो तेरा पैरहन ज़ालिम मुझे मदहोश करता है,
उठाता लहर सी दिल में, दुपट्टा जब तेरा लहरा !
आज भी जान देता है "कमल" तेरी अदाओं पर,
दबाना होंट दाँतों से भले अंदाज़ है ठहरा !
(क़यामत=प्रलय, सहरा=रेगिस्तान, पैरहन=पहनावा )
यूँ तो उल्फत ने कई बार मुझे तडपाया है !
पर ये वो दौलत है जिसे मुश्किल से पाया है !
भटकता फिरता था कभी इस गली तो उस कूचे,
अब आके दिल कहीं सही जगह पे लाया है !
जहाँ के लोग सब रखते हैं प्यार वालो पे नज़र,
कभी लगाके कान दीवार से सुनता हमसाया है !
वक़्त है वो ही सही जो गुज़रता है तेरी कुर्बत में,
वरना तो ये वक़्त यूँ ही होता जाता ज़ाया है !
ग़मों की धूप से मुझको है क्या लेना देना,
"कमल" के पास तो यार की जुल्फों का साया है !
(हमसाया=पडोसी, कुर्बत=क़रीबीपन, ज़ाया=बेकार )

भरोसा तुझको है दिल पर, भरोसा मुझको भी दिल पर !
सफीना इश्क का फिर क्यूँ ना लग जायेगा साहिल पर !!
ज़माना तो हमेशा प्यार का दुश्मन रहा, हमदम,
यकीं कैसे करूँ, तू ही बता मैं, ऐसे संगदिल पर !
जो होते प्यार के राही नहीं डरते ग़मों से वो,
इरादे पक्के हो राही पहुँच जाते हैं मंजिल पर !
हुआ जो क़त्ल है मेरा, ये मेरी खुद की मर्ज़ी थी,
कोई इल्ज़ाम ना लाना मेरे मासूम कातिल पर !
"कमल" लिखते ही रहते हो क्यूँ तुम दर्द की ग़ज़लें.
कभी ऐसी लिखो जो रंग सा छा जाये महफ़िल पर !
(सफीना=बेड़ा, साहिल=किनारा)