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रविवार, 31 मार्च 2013

दुनियावी बातों से हटके ज़रा हूँ मैं!
प्यार और उल्फत से हाँ भरा हूँ मैं!!
नीयत खराब नहीं, खोटी भी नहीं,
इस मामले में थोडा खरा हूँ मैं!
सच कड़वा भी है मंज़ूर मुझे,
झूठी तारीफों से हमेशा डरा हूँ मैं !
उभर जाते हैं कई शेर ज़ेहन में मेरे,
उसकी अदाओं पे जब भी मरा हूँ मैं!
आ गया फिर तेरी महफ़िल में "कमल",
कहूँगा शेर सभी गज़लसरा हूँ मैं!
(ज़ेहन=मस्तिष्क , गज़लसरा=ग़ज़ल सुनाने वाला)
 

मंगलवार, 26 मार्च 2013

भुला करके सारे शिकवे गिलों को!
मोहब्बत के रंग से रंग लो दिलों को!!
सैलाब-ए-उल्फत कुछ इस तरह उमड़े,
डूबा डाले नफरत के साहिलों को!
लगा करके रंग आज मोहब्बत बढाओ,
मोहब्बत से आसाँ करो मुश्किलों को!
होली किसी की भी ना तन्हा गुज़रे,
माशूका आशिक पायें  मंजिलों को!
हँसो  खेलो यारों दुनिया है फानी,
"कमल" कर दो रंगीं अब महफिलों को!

चेहरे का रंग मस्त था, जैसे हो गुलज़ार!
रंग वगैरह खरीदने, गया मैं कल बाज़ार!!
गया मैं कल बाज़ार, सोचा रंग सारे ले लूँ !
उड़ा उड़ा कर रंग, पूरे दिन भर खेलूँ !!
"कमल" ने पूछा भाव, रंग लाल पीले हरे का!
सुनकर भैया दाम, उड़ गया रंग चेहरे का !!

रविवार, 24 मार्च 2013

होरी खेले मोहन, राधा रानी के संग !

जमुना जी के किनारे, खिला रास-रंग!
राधे श्याम कहे , जमुना-जल की तरंग!!
ग्वालन छम छम नाचे, लेके मन में उमंग!
आज ग्वाले मटकते हैं, पी पी के भंग!!
राधा जी की दशा देख, सब ही है दंग !
कान्हा जी ने भिगो डाला, एक एक अंग !!
वर्णन कैसे करूँ , मेरी वाणी हैं तंग!
"कमल शर्मा" बजाले तू ढोलक मृदंग!!

शनिवार, 23 मार्च 2013


"छेड़ दी लड़की कोई" जैसे ही लोगों ने सुना!
चप्पलों से, थप्पड़ों से, मनचला खूब धुना!!
पिटके, अब तो मनचला भी सोचता होगा,
क्यूँ ये लड़की चुनी?क्यूँ ये मोहल्ला चुना?
आया था लेकर, सिर्फ एक दर्द, दिल में,
चला वो लेके दर्द बदन  में चार गुना!
जाके घर मनचले, सभी  चोटों पर,
सिकाई करना लेके पानी कुनकुना!
मनचलों ! याद रहे "कमल" की सीख,
कीडा खुद फँसता, जब भी रेशम को बुना!

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

*****विश्व जल दिवस पर *****
पानी की कीमत ज़रा, सोच अरे नादान!
मिले ना गर जो वक़्त पर, सूख जाती है जान !!
सूख जाती है जान, फिर भी ना डरते!
बिना ज़रुरत के भी, पानी बरबाद हैं करते!!
सही सोचता "कमल", रही गर यही कहानी!
नहीं मिलेगा मरने को भी, चुल्लू भर पानी !!

मंगलवार, 19 मार्च 2013

नासमझ ! क्यूँ मारता है ? तू किसी को जान से !
मारना है गर तुझे तो, मार दे एहसान से !!
एक भाई दूसरे  का आज चारा बन गया,
भाई चारा ख़त्म है, इंसान का इंसान से!
जैसा बन्दे बोयेगा वैसा ही काटेगा फिर,
खौफ खा कुछ तो अरे अल्लाह से, भगवान् से!
मिलना एक दिन ख़ाक में, फिर क्यूँ करता है गुरूर,
क्या सिकंदर और क्या रावण उठ गए जहान से!
जो भी करना कर गुज़र, जिंदा रहते ही "कमल",
कौन आता लौटकर कब्र से, शमशान  से!

रविवार, 17 मार्च 2013

अह्देशबाब, मस्ती से भरपूर थे दोनों!
रहते बहके बहके से, नशे में चूर थे दोनों!!
प्यार पहले भी शीरीं था और आज भी शीरीं,
मुनक्का हो गए हैं अब, अँगूर थे दोनों!
अब तो रहते हैं खामोश , भेड़ की तरह,
गया वो दौर, उछलते कूदते लंगूर थे दोनों!
सवेरे मायके जाना, शाम तक लौट भी आना,
भले ही दूर दिन में, ना रात में दूर थे दोनों!
"कमल" अब याद आती वो प्यारी प्यारी सी सेहत,
छुआरे हो गए हैं सूख, कभी खजूर थे दोनों!!
( अह्देशबाब=यौवन काल में, शीरीं=मीठा )

शनिवार, 16 मार्च 2013

रोज़ उल्फत में होता इम्तिहाँ मेरा!
कौन समझेगा दर्द-ए-निहाँ मेरा!!
मह्शर में किससे क्या रखूँ उम्मीद,
जब वो अपना ना हुआ यहाँ मेरा!
मेरी ज़रुरत नहीं किसी को भी,
छुटा जाता है अब कारवाँ मेरा!
दिल का गुल उसने खिलने ना दिया,
बड़ा ही खुश है बागबाँ मेरा!
"कमल" जियेजा ज़िन्दगी यूँ ही,
अब ना ज़मीं ना आसमाँ तेरा!
(दर्द-ए-निहाँ =छिपा दर्द, मह्शर =जब बुरे भले का निर्णय होगा)
ना दिल में दर्द है, ना जिगर में दर्द है !
सच तो ये है शाम से कमर में दर्द है!
कोई एक जगह हो तो मालिश भी मैं करूँ ,
कभी है इधर में दर्द कभी  उधर में दर्द है!
जिससे भी मिलता मैं, वही दर्द है बताता,
मुझको तो लगता शायद घर घर में दर्द है!
कहते हैं होगा कम डॉक्टर के पास दर्द,
किसको बताऊँ उसके भी नश्तर में दर्द है!
अब क्या लिखूँ मैं और क्या नहीं लिखूँ ,
ये सोचके "कमल" अब सर में दर्द है!
(नश्तर=सुई )
कल जो मैखाने से पी के हम निकले!
लोग कहने लगे, आप छुपे रूस्तम निकले!!
कभी ये जिद ना जायेंगे दर-ए-मैखाना,
आज ये शौक वहीँ पे दम निकले!
वाह दुख्तर-ए-रिज़, मैं तो छूटा ग़मों से,
दिल में तू आई कि दिल से गम निकले!
लडखडाये नहीं थे वो अदब था हमारा,
तेरे दरवाजे से जो होके ख़म निकले!
शाम का मंजर "कमल" ने ये देखा,
भरे मैखाने, खाली दैर-औ-हरम निकले!
(दुख्तर-ए-रिज़=अंगूर की बेटी अर्थात मदिरा, ख़म होना=झुकना,मंजर=दृश्य,मैखाने=मधुशाला,दैर-औ-हरम=मंदिर और मस्जिद)

बुधवार, 13 मार्च 2013

आ ! नये साल के नये मौसम की यूँ शुरुआत करें!
जो अधूरी रही पिछली बार वो पूरी बात करें!!
बेकार ना जाने दे हम एक भी लम्हा इस बार ,
दिन को खुशनुमा और रंगीन अपनी रात करें!
हम भी जवाँ , दिल भी जवाँ और उमंगें भी जवाँ ,
बहकती फिजा में  कौन भला बस में जज़्बात करें!
ज़िन्दगी ऐसी हसीं मिलेगी फिर ना दोबारा,
चमन के फूल सब मिलके यही इशारात करें!
आगे ज़िन्दगी में एक से एक मोड़ आयेंगे "कमल",
फैसले ज़िन्दगी के जो भी हो मिलके साथ करें!

सोमवार, 11 मार्च 2013

फैसले देखे हैं हमने, अपनी ही तकदीर के!
पायी हैं क्या क्या सजायें, वो भी बे तकसीर के!
कोई माने या ना माने पर लिखा होता जुदा,
नसीब में गरीब के, नसीब में अमीर के!
वक़्त-ए-पीरी में मुझे भी अब तो ये लगने लगा,
एक से होते हैं दिल, तिफ़्ल के और पीर के!
एक ग़ज़ल छपवाने खातिर, अपनी मैं, किताब में,
हाये कितने काटे चक्कर दफ्तर-ए-मुदीर के!
राह -ए-इश्क पर "कमल" चलता रहूँगा उम्र भर,
हौसले तो कम नहीं हैं यारों इस राहगीर के !
(तकसीर=अपराध, वक़्त-ए-पीरी=बुढ़ापा, तिफ़्ल=बच्चा, पीर=बूढ़ा, दफ्तर-ए-मुदीर=संपादक का कार्यालय )

शनिवार, 9 मार्च 2013

मेरे सभी शिब भक्त मित्रों को मेरी ओर से "महा शिव रात्रि " की बहुत बहुत हार्दिक शुभ कामनाएं ...इस शुभ अवसर पर प्रस्तुत है मेरी एक भक्ति रचना .............

मुझे श्री चरणों में दे दो ठौर , शिव शंकर आशुतोष प्रभु !
रहा भोग-लिप्त मैं कितने दिन,
और व्यर्थ जिया तेरी भक्ति बिन,
धन धान्य दिया तुमने लेकिन, मुझको ना था संतोष प्रभु .....१
हो जिस पर तेरी दया दृष्टि,
गृह होती उसके सुख वृष्टि,
तांडव से काँप उठे सृष्टि , जब होता डमरू घोष प्रभु ................२
मैं पापी हूँ, मैं हूँ कामी,
प्रभु तुम तो हो अंतर्यामी ,
मैं आया तेरी शरण स्वामी, अब दूर करो मेरे दोष प्रभु ............३ 

हूँ तेरी ऋणी मैं, काग मेरे !

मैं समझ गयी तेरा सन्देश,
आने वाले हैं ह्रदय-नरेश,
फिर कट जायेगा विरह-क्लेश,
सोते जागेंगे भाग मेरे…….............१

तू प्रफुल्लित है करके काँव,
मैं जीत गयी हूँ प्रेम-दाँव,
नहीं आज धरा पर मेरे पाँव,
मन में उठते हैं राग मेरे .................२

जब होगी पी की कृपा-दृष्टि,
बरसेगी निरत सुख की वृष्टि,
आनंदित होवेगी सृष्टि ,
प्रकाशित होंगे विहाग मेरे ...............३

बस आज से तेरा ये मुंडेर,
नित रखूँगी मैं दाने बिखेर,
मेरे दूत सुना, सन्देश फेर,
नैनों में भरा अनुराग मेरे  ...............४
 

गुरुवार, 7 मार्च 2013

याद आता है मुझे, बचपन मेरा और मेरा गाँव ..............

सर्दी के मौसम में ज्यों ही, सुबह के नौ बजते थे,
सर पे टोपा , ऊनी कपडे, माँ के हाथों सजते थे,
करते थे हम मस्तियाँ, रहते थे बिलकुल बेफिकर,
दिन के छिपने से ही पहले आ ही जाते अपने घर,
पास आके चूल्हे के वो सेंकना फिर अपने पाँव ..............१

गर्मी के मौसम में लेके, साथियों का कारवाँ ,
कच्छा और बनियान में वो घूमना यहाँ वहाँ ,
जहाँ तहाँ जो बर्र दिखती, चलते पकड़ने शौक से,
और फिर कुएँ पे जाकर,  पानी पीते ओक से,
बैठ जाते नीम नीचे देखकर गहरी सी छाँव .....................२

बारिश के मौसम में थे, भीगते जी भर के हम,
और तैराते कश्तियाँ कागज़ की बनवा कर के हम,
गम ना था कि भीगने से हो भी सकते हैं बीमार,
भाग पड़ते थे मगर जब पड़ती थी ओलों की मार,
जाते घुस घर दूसरों के जैसे जिसका लगता दाँव .............३ 

मंगलवार, 5 मार्च 2013

काम का पुजारी हो , राम को दिया है भुला, नाम नहीं ध्यान नहीं ,कलि का प्रभाव है!
यामिनी में मोह की, कामिनी के संग लगा, दामिनी सा चंचल, मन का स्वभाव है!!
चरण पड़ संतों के, शरण में प्रभु की जा, हरण कर जितने भी, कुत्सित भाव है!
"कमल" मिले कैसे कृपा, सजल तो किये ना नेत्र, सकल हृदयों में आज, भाव का अभाव है!

सोमवार, 4 मार्च 2013

कोई भी शिकवा नहीं है कातिब-ए-तकदीर से !
इश्क के अंजाम से और ख्वाब की ताबीर से!!
चाहता हूँ, पर हँसी आती नहीं लबों पे अब,
इस क़दर जकड़ा हुआ हूँ, दर्द की ज़ंजीर से !
दोनों हैं अपनी जगह, तकदीर भी तदबीर भी,
जंग जारी है मगर, तकदीर की तदबीर से !
गर्दिश-ए-अय्याम ने किस तरह लूटा मुझे,
शक्ल मेरी मिलती ना, मेरी ही तस्वीर से!
वक़्त चाहे कैसा हो, ना गिरूँगा मैं "कमल",
अपनी ही नज़रों से और अपने ही जमीर से !
( कातिब-ए-तकदीर=भाग्य-विधाता,ताबीर=स्वप्न-फल, तदबीर=प्रयत्न, गर्दिश-ए-अय्याम=समय-चक्र)

शनिवार, 2 मार्च 2013

सुना दे ! रूप-यौवन की गाथाएं,
आज धर्म की वार्तालाप रहने दे!

मत कर तू विषाद की बातें,
कर बस प्रेम आह्लाद की बातें,
सुना दे ! मजनूँ फरहाद की बातें,
आज तू भरत -मिलाप रहने दे………. १

अभी से पंडितों की क्यों माने,
पाप और नर्क को वही जाने,
सुना दे ! लैला शीरीं के गाने,
आज तू सीता-विलाप रहने दे………. २

छवि तेरी है मेरे मन उतरी,
लिए मादकता भली सुथरी,
सुना दे! कोई प्यारी सी ठुमरी,
आज विरह का आलाप रहने दे……….३