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बुधवार, 12 दिसंबर 2012

नौ दो ग्यारह हो गये - कोई कहीं, कोई कहीं !
हो गया गैरों को जब, दोनों की उल्फत का यकीं !!
नौ ग्रहों के नाम से क्यूँ डराता बरहमन,
क्या बिगाड़ेंगे मेरा-कुछ नहीं, कुछ भी नहीं !
नौ मन तेल भी होगा और राधा भी नाचेगी,
हमारे इश्क के सजदे करेंगे आसमाँ - ज़मीं !
नौलखा हार की  उसने कभी भी ना ख्वाहिश की,
डाल दो हार बाँहों का कहता मेरा महज़बीं !
नौ  ही दिन चलता नया और पुराना चलता सौ,
गम नहीं, सदियों पुराना "कमल" का इश्क-ए -रंगीं !

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

किसी ने सच कहा 'एक एहसास' है उल्फत!
खुशनसीब हैं वो जिनके पास है उल्फत!!
शायरी खुद निकलती है उल्फत भरे दिल से,
इसलिए शायरों की तो बड़ी ख़ास है उल्फत!
अपनी पे आ जाये तो उल्फत है बड़ी चीज़,
रूह तक की बुझा देती जो प्यास है, उल्फत!
ऐसे भी लोग कम नहीं इस जहान में,
उम्मीद जिनकी उल्फत और आस है उल्फत!
ये भी सच है सबको ये रास ना आती,
लेकिन "कमल" को आ गयी रास है उल्फत!

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

अव्वल तो किसी को किसी का आशिक खुदा ना करे !
करे तो फिर उनको ज़िन्दगी भर जुदा ना करे!
कहाँ लिखा है ये कि इस प्यारी उल्फत को?
सिर्फ कुँवारे  ही करे और शादीशुदा ना करे!
साथ में लेके चले और छोड़ दे मझधार में,
ज़ुल्म इतना भी किसी पर कोई नाखुदा ना करे!
यार की याद ना आये , पड़ते ही सो जाये,
कोई भी शख्स बिस्तर को इतना गुदगुदा ना करे!
बड़ा एक फर्क मोहब्बत और हवस  में है,
कोई बदनाम "कमल" मोहब्बत को बाखुदा ना करे!
(अव्वल=प्रथम,नाखुदा=मल्लाह,बाखुदा=खुदा क़सम)

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

खुदा का शुक्र है पाया सहारा तेरी उल्फत का!
हुआ कायल ये देखो दिल हमारा तेरी उल्फत का!
बड़ी इतरा रही हैं मेरी नज़रें अपनी किस्मत पर,
मिला इनको है जबसे एक नज़ारा तेरी उल्फत का!
मेरे पहलू में दिल मेरा ना फूला समाता है,
ज़रा सा क्या मिला इसको इशारा तेरी उल्फत का!
देख कर साथ दोनों को उडी रंगत रकीब की,
बड़ा वो था उमीदवार बेचारा तेरी उल्फत का!
"कमल" की है दुआ ये ही कि बस डूब ना जाये,
सितारा मेरी उल्फत का , सितारा तेरी उल्फत का!

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

चीज़ दुनिया में एक से एक अगरचय है!
मगर भाती  नहीं तुझ बिन कोई शय है!!
ज़िन्दगी गर नग्मा है मोहब्बत का,
तू ही सुर तू ही ताल तू ही लय है!
जब भी पीता तो सिर्फ अपने साकी से,
अपना ये अंदाज़-ए -तर्क -ए -मय है!
ना मिले यहाँ, मिलेंगे वहाँ  जाकर,
मिलेंगे पक्का सौ फ़ीसदी तय है!
दिल सी पाकीज़ा जगह और कहाँ,
दिल ही काबा "कमल" दिल शिवालय है!
(अगरचय =यद्यपि , अंदाज़-ए -तर्क -ए -मय=शराब छोड़ने का ढंग )
बिना माँगे पिलाता है, ऐसा मिला साकी !
डाल कर आँख आँखों में, देता पिला साकी!!
आज की शाम मस्तानी नया गुल खिलायेगी ,
फिजा भी है खिली खिली, खिला खिला साकी!
कभी हो जाती है मुर्दा जब ख्वाहिशें दिल की,
मगर ये साकी की खूबी,  देता जिला साकी!
बहुत घूमा ज़माने में मिले तुझसा कोई साकी,
मिले तुम, मैंने मेहनत का, पाया सिला साकी!
"कमल" की क्या खता इस में, ये बहका तेरी मय से है,
मेरी गुस्ताख बातों का, ना कर गिला साकी!