ये दिल बेताब है तुम्हें छूने के लिए,
अमानत गैर की हो, दिमाग कहता है !
मुझे बुझा दो और कह दो दिल की उनसे,
ना सोचो ज्यादा कुछ, ये चिराग कहता है !
तुम्हें आजादी है पूरी मेरे निजाम में,
गुलों से, बुलबुलों से अब बाग़ कहता है !
बेक़रार मिलने को तुम भी कम नहीं,
मेरे जो दिल को मिला वो सुराग कहता है !
कभी सोचा है कुछ तुमने मेरे लिए "कमल"
तन्हाई का है दिल पर वो दाग कहता है !
अमानत गैर की हो, दिमाग कहता है !
मुझे बुझा दो और कह दो दिल की उनसे,
ना सोचो ज्यादा कुछ, ये चिराग कहता है !
तुम्हें आजादी है पूरी मेरे निजाम में,
गुलों से, बुलबुलों से अब बाग़ कहता है !
बेक़रार मिलने को तुम भी कम नहीं,
मेरे जो दिल को मिला वो सुराग कहता है !
कभी सोचा है कुछ तुमने मेरे लिए "कमल"
तन्हाई का है दिल पर वो दाग कहता है !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें