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रविवार, 9 सितंबर 2012

***ग़ज़ल***

जी में आया है तेरे हुस्न पर इक ग़ज़ल लिखूँ !
कल का इन्तिज़ार कौन करे बस इसी पल लिखूँ !!
गुलाब की पंखुड़ी है दो, तेरे ये होंट नरम,
गलत ना होगा जो चेहरे को कँवल लिखूँ !
ये तेरी उठती जवानी, ये तेरा जोशीला बदन,
मेरी तो ज़िन्दगी है ये, मैं क्यूँ अजल लिखूँ !
आओ बाँहों में मेरी, तबियत का आज तकाज़ा है,
लफ़्ज़ों में हाये कैसे दिल की उथल पुथल लिखूँ !
लो लिखते लिखते शेर, ग़ज़ल भी हो गयी पूरी,
सब कुछ तो लिख दिया, अब क्या "कमल" लिखूँ !
(कँवल=कमल का फूल, अजल=मृत्यु, तकाज़ा=माँग)

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