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बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

...उसके यहाँ

मेरे अरमानों की कीमत कुछ नहीं उसके यहाँ !
अब मैं टुकड़े टूटे दिल के लेके जाऊँ कहाँ !!
क्या खबर थी इश्क में आयेगा ऐसा भी दौर,
है जहाँ इकरार बसता, इनकार भी होगा वहाँ !
बदनसीबी ना कहूँ तो क्या कहूँ फिर मैं इसे,
पास में मंजिल के जाके लुट गया है कारवाँ !
दुनिया की नज़रों से छुपके था बसाया घोंसला,
बिजलियों को है बताया किसने मेरा आशियाँ!
वक़्त ही कर देगा इसको खत्म अब अय "कमल",
फासला जो थोडा सा आ गया है दरमियाँ !

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