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गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

मेरा जनाज़ा...

मेरा जनाज़ा गुज़रता जो उसके मकान से निकला !
पूछते हैं, किसका है? जो इतनी शान से निकला !!
मुझको एहसास फिर भी गुलिस्ताँ का हुआ,
भले ही काफिला मेरा बियाबान से निकला!
कभी खाली ना गया ये मेरा दावा है,
जब कोई तीर उस शोख की कमान से निकला !
सिर्फ रह जायेंगे बस स्याही भरे ही पन्ने,
जो उसका ज़िक्र-ओ-नाम मेरे दीवान से निकला!
शेर कहते है ये उसको दुनिया वाले.
मस्ती में जो जुमला "कमल" की ज़बान से निकला !
(शोख=चंचल लड़की, दीवान=काव्य-संग्रह, जुमला=वाक्य)

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