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मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

...किताब में

प्यार अब तो रह गया कहानी में, किताब में!
दब गया है सहरा में , डूब गया चिनाब में!!
अपने तो नसीब में शायद लिखे थे खार ही,
लेने वाले ले गये जो खुशबू थी गुलाब में!
औरों से जब वो मिला तो मिला दिल खोल कर,
मेरी किस्मत ये रही मुझसे मिला नकाब में!
भूले से आ जाता हूँ जो मैं साहिल पर कभी,
फिर पटकती मौज-ए-वक़्त गम के ही सैलाब में!
कहो "कमल" कैसे हो? पूछा उसने ख़त में ये,
कोई बतलाओ ज़रा क्या लिखूँ जवाब में!
(सहरा=रेगिस्तान जहाँ मजनूँ मारा मारा फिरता था, चिनाब=वो नदी जिस में सोहनी महिवाल डूब गए थे, खार=काँटे, साहिल=किनारा, मौज-ए-वक़्त=समय की लहर, सैलाब=बाढ़)

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