फ़ॉलोअर

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

मुक़द्दर...

मुक़द्दर राह-ए-जीस्त में कैसे मोड़ देता है !
पकड़ता एक है दामन, दूसरा छोड़ देता है !!
लोग मिलते ही रहते हैं कभी कैसे कभी कैसे,
कोई दिल जोड़ देता है, कोई दिल तोड़ देता है !
ज़माना भी यहाँ पर चाल चलता है दोरंगी,
कभी रखता छुपाके कभी भांडा फोड़ देता है !
ये भी सच है कि मंजिल मिलती उसको है,
इरादा करके जो पक्का लगा दौड़ देता है !
"कमल" जब भी करो प्यार सच्चा ही करना,
सच्चा प्यार ही बन्दे को रब से जोड़ देता है !
(राह-ए-जीस्त=जीवन-मार्ग )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें