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शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल

क्या रदीफ़,काफिया, मतला, बहर, मकता है!
जिसको इल्म है वो ही ग़ज़ल लिख सकता है !
थक के जो बैठ गया उसे मंजिल कहाँ नसीब,
सही मुसाफिर ना मंजिल से पहले थकता है!
छकते होंगे तेरे मयकश तेरी महफ़िल में,
ये निगाहों से पीने वाला कहाँ छकता है !
सीख लो कोई हुनर मेरी मानो तो प्यारों,
एक अच्छा हुनर कई ऐबों को ढकता है!
हर एक शेर लिखा खिरद से सलाह लेकर,
भले ही लोग कहे "कमल"  तो बकता है !
(खिरद=बुद्धि )

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