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रविवार, 21 अक्तूबर 2012

मेरा दावा...

यही है मेरा दावा भी यही मेरा यकीन है !
कि मेरे यार के जैसा नहीं कोई हसीन है !!
फैसला हो गया होगा अब तो फरिश्तों में,
कि बढ़के हूर-ए-जन्नत से कहीं हूर-ए-ज़मीन है !
रुख-ए-रोशन के क्या कहने चाँद भी रश्क करता है,
फलक के चाँद से उजला मेरा माहेजबीन है !
ग़जल कैसे ये लिखता मैं, ना होते वो ज़माने में,
उन्हीं के दम से ही यारों मेरी दुनिया रंगीन है !
नहीं देखा नहीं देखा, हुस्न है या क़यामत है,
"कमल" तू ही नहीं, सब ही, कहते आफरीन है !
(रुख-ए-रोशन=ओजस्वी मुखमंडल, रश्क=ईर्ष्या, फलक=आकाश, माहेजबीन=चाँद जैसे मस्तक वाला, क़यामत=प्रलय, आफरीन=शाबाश, वाह )

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