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शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

...सिर्फ सात नहीं

रहूँगा हर जनम मैं साथ , सिर्फ सात नहीं !
अलग होती हुस्न से इश्क की जात नहीं !
नहीं डूबेगा, नहीं डूबेगा, सफीना-ए- इश्क मेरा,
सातों समंदर मिल के डुबो दे इतनी औकात नहीं !
ख्याल-ए-जुदाई भी तुम अपने दिल में ना लाना,
सातों दिन अपने हैं, एक दिन या एक रात नहीं !
एक प्यार के ही रंग में सारे रंग है शामिल ,
सातों रंग धनुक के करते क्या इशारात नहीं !
देखना प्यार "कमल" अपना  बुलंदी पे जायेगा,
सातों आसमानों से आगे, वरना कोई बात नहीं !
(जात=जाति, सफीना-ए-इश्क=प्रेम की नाव, इशारात=संकेत, धनुक=इन्द्र धनुष )

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