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मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

...मेरा मुस्तकबिल है तू !

तेरा माजी जो भी हो मेरा मुस्तकबिल है तू!
फैसला ये दिल का है, प्यार के काबिल है तू!!
कच्चे पक्के रास्तों पर अब तलक भटका किया,
हो गया बेफिक्र मैं मिल गयी मंजिल है तू!
सादगी चेहरे पे और आँखों में शर्म-ओ-हया,
झूठा है, जो कहता है कि कातिल है तू!
रह नहीं सकता हूँ जैसे जिंदा मैं बिन साँस के,
इस तरह से ज़िन्दगी में हो गयी शामिल है तू!
प्यार मुझको क्या हुआ कहने लगे है दोस्त सब,
अय "कमल" अब हो गया हमसे क्यूँ गाफिल है तू!
(माजी=अतीत, मुस्तकबिल=भविष्य)

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