हूँ तेरी ऋणी मैं, काग मेरे !
मैं समझ गयी तेरा सन्देश,
आने वाले हैं ह्रदय-नरेश,
फिर कट जायेगा विरह-क्लेश,
सोते जागेंगे भाग मेरे…….............१
तू प्रफुल्लित है करके काँव,
मैं जीत गयी हूँ प्रेम-दाँव,
नहीं आज धरा पर मेरे पाँव,
मन में उठते हैं राग मेरे .................२
जब होगी पी की कृपा-दृष्टि,
बरसेगी निरत सुख की वृष्टि,
आनंदित होवेगी सृष्टि ,
प्रकाशित होंगे विहाग मेरे ...............३
बस आज से तेरा ये मुंडेर,
नित रखूँगी मैं दाने बिखेर,
मेरे दूत सुना, सन्देश फेर,
नैनों में भरा अनुराग मेरे ...............४
मैं समझ गयी तेरा सन्देश,
आने वाले हैं ह्रदय-नरेश,
फिर कट जायेगा विरह-क्लेश,
सोते जागेंगे भाग मेरे…….............१
तू प्रफुल्लित है करके काँव,
मैं जीत गयी हूँ प्रेम-दाँव,
नहीं आज धरा पर मेरे पाँव,
मन में उठते हैं राग मेरे .................२
जब होगी पी की कृपा-दृष्टि,
बरसेगी निरत सुख की वृष्टि,
आनंदित होवेगी सृष्टि ,
प्रकाशित होंगे विहाग मेरे ...............३
बस आज से तेरा ये मुंडेर,
नित रखूँगी मैं दाने बिखेर,
मेरे दूत सुना, सन्देश फेर,
नैनों में भरा अनुराग मेरे ...............४
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