याद आता है मुझे, बचपन मेरा और मेरा गाँव ..............
सर्दी के मौसम में ज्यों ही, सुबह के नौ बजते थे,
सर पे टोपा , ऊनी कपडे, माँ के हाथों सजते थे,
करते थे हम मस्तियाँ, रहते थे बिलकुल बेफिकर,
दिन के छिपने से ही पहले आ ही जाते अपने घर,
पास आके चूल्हे के वो सेंकना फिर अपने पाँव ..............१
गर्मी के मौसम में लेके, साथियों का कारवाँ ,
कच्छा और बनियान में वो घूमना यहाँ वहाँ ,
जहाँ तहाँ जो बर्र दिखती, चलते पकड़ने शौक से,
और फिर कुएँ पे जाकर, पानी पीते ओक से,
बैठ जाते नीम नीचे देखकर गहरी सी छाँव .....................२
बारिश के मौसम में थे, भीगते जी भर के हम,
और तैराते कश्तियाँ कागज़ की बनवा कर के हम,
गम ना था कि भीगने से हो भी सकते हैं बीमार,
भाग पड़ते थे मगर जब पड़ती थी ओलों की मार,
जाते घुस घर दूसरों के जैसे जिसका लगता दाँव .............३
सर्दी के मौसम में ज्यों ही, सुबह के नौ बजते थे,
सर पे टोपा , ऊनी कपडे, माँ के हाथों सजते थे,
करते थे हम मस्तियाँ, रहते थे बिलकुल बेफिकर,
दिन के छिपने से ही पहले आ ही जाते अपने घर,
पास आके चूल्हे के वो सेंकना फिर अपने पाँव ..............१
गर्मी के मौसम में लेके, साथियों का कारवाँ ,
कच्छा और बनियान में वो घूमना यहाँ वहाँ ,
जहाँ तहाँ जो बर्र दिखती, चलते पकड़ने शौक से,
और फिर कुएँ पे जाकर, पानी पीते ओक से,
बैठ जाते नीम नीचे देखकर गहरी सी छाँव .....................२
बारिश के मौसम में थे, भीगते जी भर के हम,
और तैराते कश्तियाँ कागज़ की बनवा कर के हम,
गम ना था कि भीगने से हो भी सकते हैं बीमार,
भाग पड़ते थे मगर जब पड़ती थी ओलों की मार,
जाते घुस घर दूसरों के जैसे जिसका लगता दाँव .............३
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