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रविवार, 17 मार्च 2013

अह्देशबाब, मस्ती से भरपूर थे दोनों!
रहते बहके बहके से, नशे में चूर थे दोनों!!
प्यार पहले भी शीरीं था और आज भी शीरीं,
मुनक्का हो गए हैं अब, अँगूर थे दोनों!
अब तो रहते हैं खामोश , भेड़ की तरह,
गया वो दौर, उछलते कूदते लंगूर थे दोनों!
सवेरे मायके जाना, शाम तक लौट भी आना,
भले ही दूर दिन में, ना रात में दूर थे दोनों!
"कमल" अब याद आती वो प्यारी प्यारी सी सेहत,
छुआरे हो गए हैं सूख, कभी खजूर थे दोनों!!
( अह्देशबाब=यौवन काल में, शीरीं=मीठा )

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