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सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

हम तो माटी के पुतले हैं होती है इबादत क्या जाने !
दुनियादारी में ऐसे फँसे उस रब की अज्मत क्या जाने!!
ये पीर, मौलवी, वाइज सब मालिक के भेद को पा ना सके,
कब हो जाये और कैसे हो मालिक की रहमत क्या जाने!
उसके दस्तों में खलकत है डोरी है चाँद सितारों की ,
हम लाखों ढेर गुनाहों के आका की इज्जत क्या जाने!
बस अपने दिल को पाक बना वो अल्ला बड़ा ही अकबर है,
किस दिल पर उसकी हो जायेहम नजर-ए-इनायत क्या जाने!
है दिल में हमारे याद-ए-खुदा और नाम-ए-खुदा होंटों पर है,
कुछ और "कमल" मालूम नहीं होती है अकीदत क्या जाने !
(अज्मत =महानता ,वाइज =धर्मोपदेशक , दस्त=हाथ, खलकत=संसार, निजाम=प्रबंध, आका=स्वामी, पाक=पवित्र, अकबर=श्रेष्ठ, अकीदत=श्रद्धा )

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