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गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

ना मिलेगा ढूँढने से, बागबाँ मेरी तरह !
बाग़-ए-उल्फत को बचाता, पासबाँ मेरी तरह!!
एक ये भी दौर है, रोता हूँ अपने आप पर,
एक ज़माना था, नहीं था शादमाँ मेरी तरह!
इश्क है एक भारी पत्थर, मीर साहेब ने कहा,
फिर उठायेगा कोई नातवाँ मेरी तरह !
देख कर शबनम सुबह सोचके ये रह गया,
रोया कितना रात भर आसमाँ  मेरी तरह !
हाँ, "कमल" के बाद भी आयेंगे अहलेदिल बहुत,
पर किसी का ना लुटे कारवाँ मेरी तरह!
(पासबाँ =रक्षक, शादमाँ =प्रसन्न, नातवाँ =दुर्बल,शबनम=ओस, अहलेदिल =दिल वाले )

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