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शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

क्या मिला आखिर मुझे, आकर के दिल्ली!
ताने देते हैं दोस्त, उड़ाते हैं खिल्ली!
तौबा तौबा ये दिल्ली की आबोहवा,
खराब होके रहेंगे जिगर और तिल्ली!
तौर भी घटने लगा निगाहों का,
धुएँ की जम गयी आँख में झिल्ली !
उसको पाने का ख्वाब क्या देखा,
लोग कहने लगे हैं शेख चिल्ली!
हम हकीकत से वाकिफ हैं "कमल",
शेर हो बाहर , घर में भीगी बिल्ली !
(आबोहवा=जलवायु, तिल्ली=प्लीहा)

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