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शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

ले चल माँझी ! ले चल माँझी !
नाव सजाकर ले चल माँझी !!

पार नदी प्रीतम की नगरिया,
चली मैं लेकर प्रेम गगरिया,
नहीं किसी की लगे नजरिया,
मुझे छिपा कर ले चल माँझी !
नाव सजाकर ले चल माँझी !!........१

जग के बंधन भले ही रोके,
आज रहूँगी पिया की होके ,
चलते समय ना कोई टोके,
मुझे बचा कर ले चल माँझी !
नाव सजाकर ले चल माँझी !!........२

मुझे निभाना है प्रण अपना,
करना पूरा मिलन का सपना,
क्यों अब विरह-ताप में तपना,
मुझे बिठा कर ले चल माँझी !
नाव सजाकर ले चल माँझी !!.........३ 

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