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बुधवार, 12 दिसंबर 2012

नौ दो ग्यारह हो गये - कोई कहीं, कोई कहीं !
हो गया गैरों को जब, दोनों की उल्फत का यकीं !!
नौ ग्रहों के नाम से क्यूँ डराता बरहमन,
क्या बिगाड़ेंगे मेरा-कुछ नहीं, कुछ भी नहीं !
नौ मन तेल भी होगा और राधा भी नाचेगी,
हमारे इश्क के सजदे करेंगे आसमाँ - ज़मीं !
नौलखा हार की  उसने कभी भी ना ख्वाहिश की,
डाल दो हार बाँहों का कहता मेरा महज़बीं !
नौ  ही दिन चलता नया और पुराना चलता सौ,
गम नहीं, सदियों पुराना "कमल" का इश्क-ए -रंगीं !

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