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गुरुवार, 17 जनवरी 2013

आया क्या याद जो आँखों से अश्क फिर निकला ! 
एक कतरे में से ये आब तो वाफिर निकला!!
साथ में दिल के होश भी खो बैठा,
तेरे कूचे से गुज़रता जो मुसाफिर निकला!
क़दम क़दम पे मेरे दिल को शिकस्त मिली,
और वो होंगे दिल जिनका ज़ाफिर निकला!
मेलजोल क्या बढ़ा ज़रा हसीनों से,
ज़माना कहता है देखो "कमल" काफिर निकला!
(आब=पानी, वाफिर=बहुत अधिक, शिकस्त=पराजय, जाफिर=विजयी, काफिर=पापी )

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