होरी खेले मोहन, राधा रानी के संग !
जमुना जी के किनारे, खिला रास-रंग!
राधे श्याम कहे , जमुना-जल की तरंग!!
ग्वालन छम छम नाचे, लेके मन में उमंग!
आज ग्वाले मटकते हैं, पी पी के भंग!!
राधा जी की दशा देख, सब ही है दंग !
कान्हा जी ने भिगो डाला, एक एक अंग !!
वर्णन कैसे करूँ , मेरी वाणी हैं तंग!
"कमल शर्मा" बजाले तू ढोलक मृदंग!!
जमुना जी के किनारे, खिला रास-रंग!
राधे श्याम कहे , जमुना-जल की तरंग!!
ग्वालन छम छम नाचे, लेके मन में उमंग!
आज ग्वाले मटकते हैं, पी पी के भंग!!
राधा जी की दशा देख, सब ही है दंग !
कान्हा जी ने भिगो डाला, एक एक अंग !!
वर्णन कैसे करूँ , मेरी वाणी हैं तंग!
"कमल शर्मा" बजाले तू ढोलक मृदंग!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें