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रविवार, 14 जुलाई 2013

हसरतें गुलों की ले, गुलज़ार में गया !
मगर पूरा दिन बीनते खार में गया !!
बिना खरीदे ही चला आया घर को,
फिर क्यूँ भला मैं बाज़ार में गया !
उतार दिया लोगों ने निगाहों से,
कल ज़रा जो मैं कूए यार में गया !
नींद, आराम, चैन, सुकूँ  सारा,
लुटा सब कुछ मैंने प्यार में दिया !
कर दिया वापस दिल को लेके "कमल ",
नक़द का माल भी उधार में  गया !

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