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शनिवार, 27 जुलाई 2013

जलवानुमाई क्या हुई

जलवा नुमाई क्या हुई उसके शबाब की!
उम्मीदें और बढ़ गयी दिल-ए-बेताब की!!
उसकी आँखों का नशा अभी बाकी है,
हटाओ सामने से ये सुराही शराब की!
मैं अपनी ही दुनिया में खुश हूँ वाइज़,
हो तुझी को मुबारक दुनिया किताब की!
जो दिल में आया मेरे करूँगा वही मैं,
फुरसत नहीं जो सोचूँ गुनाहोसवाब की!
बस अब तो अपनी कलम रोकिये "कमल",
बेपर्दा हो ना जाये बातें हिजाब की!
(वाइज़=उपदेशक, किताब=धर्मशास्त्र, गुनाहोसवाब=पाप और पुण्य, हिजाब=पर्दा )

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