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शनिवार, 6 अप्रैल 2013

"कमल" तो सिर्फ शायरी का तालिब है!
उस्ताद तो आज भी मीर-औ-ग़ालिब है!
कौन  पढ़ सका तहरीर-ए-तकदीर,
लिखने वाला बड़ा तेज़ कातिब है!
मौका परस्ती तो देखो इस दिल की ,
कल था मेरी, आज तेरी जानिब है!
रख या फेंक, ये दिल तुझको दिया,
कर वही जो तुझे मुनासिब है!
रश्क करता है माह तेरे रुख से,
जहाँ मैं मुझसे भी बढ़के साकिब है!
(तालिब=इच्छुक, उस्ताद=गुरु, मीर-औ-ग़ालिब=मीर और ग़ालिब: दो प्रसिद्द शायर, तहरीर-ए-तकदीर=भाग्य के लेख, कातिब=लिखने वाला, जानिब=ओर, मुनासिब=उचित, रश्क=ईर्ष्या, माह=चन्द्रमा, रुख=मुख मंडल, साकिब=उज्जवल)

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